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________________ दर्द तो बढ़ेगा, पीड़ा बढ़ेगी, बोध बढ़ेगा। लेकिन यह संक्रमण में होगा। एक घड़ी आएगी, छलांग लगेगी। सौ डिग्री पर जैसे पानी भाप बन जाता है और और छलांग लग जाती है - ऐसे सौ डिग्री पर जब होश आता है, एक छलांग लग जाती है। तत्क्षण तुम पाते हो कि तुम्हारा शरीर और मन पीछे छूट गया। सब सुख-दुख वहीं थे, इंद्रियों में थे। अब तुम पार हो गए। तुम दूर हो गए। अब तुम्हारा सारा तादात्म्य समाप्त हो गया। लेकिन इस घड़ी के आने के पहले बोध के साथ - साथ दुख भी बढ़ेगा । संस्कृत में बड़ा प्यारा शब्द वेदना। उसके दोनों अर्थ होते हैं: दुख और बोध । 'वेद' उसी धातु से बना है जिससे 'वेदना' । वेद का अर्थ होता है : ज्ञान, बोध | 'वेदना' का अर्थ होता है : ज्ञान, बोध । और दूसरा अर्थ होता है: दुख, पीड़ा । संस्कृत बहुत अनूठी भाषा है उसके शब्दों का विश्लेषण बड़ा बहुमूल्य है| क्योंकि जिन्होंने उस भाषा को रचा है, बहुत जीवन की गहन अनुभूतियों के आधार पर रचा है जैसे-जैसे बोध बढ़ है, दुख बढ़ता है। अगर दुख के बढ़ने से घबरा गए तो एक ही उपाय है: बोध को छोटा कर लो। वही तो हम करते हैं। सिर में दर्द हुआ, एस्प्रो ले लो! एस्प्रो करेगी क्या? दर्द को थोड़े ही मिटाती है, सिर्फ बोध को क्षीण कर देती है, तंतुओं को शिथिल कर देती है, तो दर्द का पता नहीं चलता। ज्यादा तकलीफ है, पत्नी मर गई, शराब पी लो ! दिवाला निकल गया, शराब पी लो। बोध को कम कर लो, तो वेदना कम हो जाएगी। बहुत से लोगों ने यही खतरनाक तरकीब सीख ली है। जीवन में दुख बहुत है, उन्होंने बोध को बिलकुल नीचा कर लिया है : न होगा बोध, न होगी पीड़ा। लेकिन यह बड़ा महंगा सौदा है। क्योंकि बोध के बिना तुम्हारा बुद्धत्व कैसे फलेगा, तुम्हारा फूल कैसे खिलेगा? कैसे बनोगे कमल के फूल फिर? यह सहस्रार अनखुला ही रह जाएगा। घबड़ाओ मत, इस पीड़ा को स्वीकार करो। इस पीड़ा की स्वीकृति को ही मैं तपश्चर्या कहता हूं। तपश्चर्या मेरे लिए यह अर्थ नहीं रखती है कि तुम उपवास करो, धूप में खड़े रहो, पानी में खड़े रहो- उन मूढताओं का नाम तपश्चर्या नहीं है। तपश्चर्या का इतना ही अर्थ है : बोध के बढ़ने के साथ वेदना बढ़ेगी, उस वेदना से डरना मत उसे स्वीकार कर लेना कि ठीक है, यह बोध के साथ बढ़ती है। थोड़े दूर तक बोध के साथ वेदना बढ़ती रहेगी। फिर एक घड़ी आती है, बोध छलांग लगा कर पार हो जाता है, वेदना पीछे पड़ी रह जाती है। जैसे एक दिन सांप अपनी पुरानी केंचुली के बाहर निकल जाता है, ऐसे एक दिन वेद वेदना की केंचुली के बाहर निकल जाता है। बोध वेदना के पार चला जाता है। लेकिन मार्ग पर पीड़ा है। उसे स्वीकार करो। उसे इस तरह स्वीकार करो कि वह भी उपाय है तुम्हारे बोध को जगाने का । तुमने कभी खयाल किया, जब तुम सुख में होते हो, भगवान भूल जाता है; जब तुम दुख में होते हो, तब याद आता है! तो दुख का भी कुछ उपयोग है।
SR No.032111
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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