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________________ और इसे जान ले, वह धन्यभागी है। वह निवृत्त हो गया। उसे प्राप्ति हो जाती है। तुमने मलूकदास का वचन सुना होगा। अजगर करे न चाकरी पंछी करे न काम। दास मक्का कह गये सबके दाता राम।। वह पूरी व्याख्या है अष्टावक्र की महागीता की। वह महासूत्र है। प्रभु सब कर रहा है। तुम सिर्फ उसे करने दो, बाधा न दो। परमात्मा चल ही रहा है, तुम्हारे अलग चलने से कुछ भी होने वाला नहीं। यह धारा बही जा रही है। तुम इसके साथ लीन हो जाओ, तुम तैसे भी मत। इसके आगे का सूत्र तुम्हें और भी घबडायेगा 'जो आंख के ढंकने और खोलने के व्यापार से दुखी होता है, उस आलसी शिरोमणि का ही सुख है, दूसरे किसी का नहीं।' अजगर करे न चाकरी पंछी करे न काम। दास मज्जा कह गये सबके दाता राम।। अष्टावक्र कहते हैं : जो आंख के पलक झपने में भी सोचता है कौन पंचायत करे; जो इतना कर्ता- भाव भी नहीं लेता है कि अपनी आंख भी झपकं वह भी परमात्मा पर ही छोड़ देता है कि तेरी मर्जी तो खोल, तेरी मर्जी तो न खोल, जो अपना सारा कर्तृत्व- भाव समर्पित कर देता है..। व्यापारेखिद्यते यस्तु निमेषोत्मेषयोरपि। तस्य आलस्य धुरीणस्य सुखं...।। उसका ही सुख है-उस धुरीण का, जो आलस्य में आत्यंतिक है। अभी पश्चिम में एक किताब छपी है। उस किताब के लिखने वाले को अष्टावक्र की गीता का कोई पता नहीं, अन्यथा वह बड़ा प्रसन्न होता। लेकिन किताब जिसने लिखी है, अनुभव से लिखी है। किताब का नाम है. 'ए लेजी मैन्स गाइड टू एनलाइटेनमेन्ट।' आलसियों के लिए मार्गदर्शिका निर्वाण की! उसे कुछ पता नहीं है अष्टावक्र का, लेकिन उसकी अनुभूति भी करीब-करीब वही है। अष्टावक्र कहते हैं : जो आंख ढंकने और खोलने के व्यापार में भी पंचायत अनुभव करता है कि कौन करे, मैं हूं कौन करने वाला! और तुम जरा गौर करो, तुम आंख झपते हो? यह तुम्हारा कृत्य है? आंख अपने से झपक रही है। अगर तुम्हें झपकनी और खोलनी पड़े, बुरी तरह थक जाओ, दिन भर में थक जाओ, करोड़ों बार झपकती है। यह तो अपने से हो रहा है। एक मक्खी आंख की तरफ भागी आती है तो तुम झपते थोड़े ही हो, झपक जाती है। क्योंकि अगर तुम झेपो तो देर लग जाये, उतनी देर में तो मक्खी टकरा जाये। इसको तो वैज्ञानिक कहता है. रिफ्लैक्स है। यह अपने से हो रहा है। वैज्ञानिक इसको रिफ्लैक्स
SR No.032111
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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