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________________ आने लगेगी। फिर तुम पढ़ो गीता को, पढ़ो कुरान को, पढ़ो धम्मपद को-अचानक तुम पाओगे. 'अरे वही! ठीक!' तुम्हारे प्राणों से अचानक स्वीकार का भाव उठेगा कि ठीक यही, यही तो मैंने भी जाना! सब शास्त्र तम्हारे गवाही हो जायेंगे। शास्त्र साक्षी हैं। और जिन महामुनियों ने शास्त्रों को रचा, उन्होंने इसलिए नहीं रचा है कि तुम कंठस्थ करके ज्ञानी हो जाओ। उन्होंने इसलिए रचा है कि जब तुम्हें स्वाद लगे तब तुम्हें गवाहियां मिल जायें। तुम अकेले न रहो रास्ते पर। ऐसा न हो कि तुम घबरा जाओ कि यह क्या हो रहा है! यह किसी को हुआ पहले कि नहीं हुआ? जो मुझे हो रहा है, वह कल्पना तो नहीं है? जो मुझे हो रहा है, वह कोई मनका जाल ही तो नहीं है? जो मुझे हो रहा है, वह मैं ठीक रास्ते पर चल रहा हूं या भटक गया हूं? _शास्त्र तुम्हारी गवाहियां हैं। जब तुम अनुभव करने लगोगे तो शास्त्र तुम्हें सहारा देनेलगेंगे। और शास्त्र तुम्हें हिम्मत देंगे, पीठ थपथपायेंगे कि तुम ठीक हो, ठीक रास्ते पर हो, ऐसा ही हुआ है,. ऐसा ही सदा होता रहा है और आगे बढ़े चलो! जैसे-जैसे तुम आगे बढ़ोगे सत्य की तरफ, वैसे-वैसे तुम्हें शब्द में भी उसी की छाया और झलक मिलने लगेगी। ऐसा समझो, अगर मैं तुम्हें जानता हूं तो तुम्हारे फोटोग्राफ को भी पहचान लूंगा। इससे उल्टी बात जरूरी नहीं है। तुम्हारे फोटोग्राफ को पहचानने से तुम्हें जान लूंगा यह पक्का नहीं है। क्योंकि फोटोग्राफ तो थिर है। तुम्हारे बचपन का चित्र आज तुम्हारे चेहरे से कोई संबंध नहीं रखता। तुम तो जा चुके आगे, बढ़ चुके आगे। और एक ही आदमी के चित्र अलग- अलग ढंग से लिए जायें, अलगअलग कोण से लिए जायें, तो ऐसा मालूम होने लगता है कि अनेक आदमियों के चित्र हैं। _ऐसा हुआ, स्टेलिन के जमाने की घटना है। एक आदमी ने चोरी की और उसके दस चित्र-उसी एक आदमी के दस चित्र- एक बांये से, एक दाये से, एक पीछे से, एक सामने से, एक इधर से, एक उधर से, दस चित्र उसके भेजे गये पुलिस स्टेशन में कि इस आदमी का पता लगाओ। सात दिन बाद जब पूछताछ की गई कि पता लगा? तो उन्होंने कहा कि दसों आदमी बंद कर लिए गये। दसों! वे एक आदमी के चित्र थे। उन्होंने कहा कि अब बहुत देर हो चुकी क्योंकि दसों ने स्वीकार भी कर लिया है अपराध। तो रूस की तो हालत ऐसी है कि जो चाहो स्वीकार करवा लो। अब तो देर हो चुकी है, उन्होंने कहा, कि वे दस स्वीकार भी कर चुके, दस्तखत भी कर चुके कि ही, उन्होंने ही चोरी की है। दस आदमी पकड़ लिए एक आदमी के चित्र से! यह संभव है। इसमें अड़चन नहीं है। तुम्हीं कभी अपने अलबम को उठा कर देखो। अगर गौर से देखोगे तो तुम्ही कहोगे, तुम कितने बदलते जा रहे हो! कितने बदलते जा रहे हो! दो-चार-दस साल के बाद तुम्हें मित्र मिल जाता है तो पहचान में नहीं आता। मुल्ला नसरुद्दीन एक पुल पर से गुजर रहा था। उसने सामने एक आदमी को देखा। जा कर जोर से उसकी पीठ पर धप्पा मारा और कहा. ' अरे प्यारे, बहुत दिन बाद दिखे कई साल बाद दिखे!' वह आदमी बहुत चौंका भी, गिरते-गिरते बचा भी। यह कौन प्रेमी मिल गया! उसने लौट कर देखा, कुछ पहचान में भी नहीं आया। तो उसने कहा कि क्षमा करिए, शायद आप किसी और आदमी के
SR No.032111
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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