SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 4
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जो बेड़े आए थे इस घाट तक अभी उनकी खबर कहीं से न आई, यहां न बांधो नाव । रहे हैं जिनसे शनासा यह आसमा वह नहीं यह वह जमीं नहीं भाई, यहां न बांधो नाव । यहां की खाक से हम भी मुसाम रखते हैं। वफा की बू नहीं आई, यहां न बांधो नाव। जो सरजमीन अजल से हमें बुलाती है। वह सामने नजर आई, यहां न बांधो नाव । सवादे - साहिले - मकसूद आ रहा है नजर ठहरने में है तबाही, यहाँ न बांधो नाव । जहां-जहां भी हमें साहिलों ने ललचाया सदा फिराक की आई, यहां न बांधो नाव । किनारा मनमोहक तो है यह, सपनों जैसा सुंदर है। बड़े आकर्षण हैं यहां, अन्यथा इतने लोग भटकते न। अनंत लोग भटकते हैं, कुछ गहरी सम्मोहन की क्षमता है इस किनारे में। इतने इतने लोग भटकते हैं, अकारण ही न भटकते होंगे - कुछ - लुभाता होगा मन को कुछ पकड़ लेता होगा। कभी-कभार कोई एक अष्टावक्र होता है, कभी कोई जागता ; अधिक लोग तो सोए-सोए सपना देखते रहते हैं। इन सपनों में जरूर कुछ नशा होगा, इतना तो तय है। और नशा गहरा होगा कि जगाने वाले आते हैं, जगाने की चेष्टा करते हैं, चले जाते हैं और आदमी करवट बदल कर फिर अपनी नींद में खो जाता है। आदमी जगाने वालों को भी धोखा दे जाता है। आदमी जगाने वालों से भी नींद का नया इंतजाम कर लेता है, उनकी वाणी से भी शामक औषधियां बना लेता है। बुद्ध जगाने आते हैं; तुम अपनी नींद में ही बुद्ध को सुन लेते हो| नींद में और-और सपनों में तुम बुद्ध की वाणी को विकृत कर लेते हो, तुम मनचाहे अर्थ निकाल लेते हो तुम अपने भाव डाल देते हो। जो बुद्ध ने कहा था, वह तो सुन ही नहीं पाते, जो तुम सुनना चाहते थे, वही सुन लेते हो - फिर करवट लेकर तुम सो जाते हो। तो बुद्धत्व भी तुम्हारी नींद में ही डूब जाता है तुम उसे भी डुबा लेते हो । लेकिन, कितने ही मनमोहक हों सपने, चिंता नहीं मिटती । काटा चुभता जाता है, सालता है,
SR No.032111
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy