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________________ को ध्यान दो, न उनकी गालियों में रस लो। तुम जो कर रही हो, किए जाओ। जो हो रहा है, उसे होने दो। तुम चेष्टा भी मत करना भूल कर कि तुम्हें उन्हें राजी करना है या मेरे पास लाना है। भूल कर यह मत करना। तुम जितनी चेष्टा लाने की करोगी, उतनी ही मुश्किल हो जायेगी; उतना ही अहंकार बाधा बनेगा। एक महिला ने मुझे आ कर कहा - पूना की ही महिला है-उसने कहा कि मेरे पति कहते हैं कि 'उनको भूल कर सुनने मत जाना। तुझे जो भी पूछना हो मुझसे पूछा ' आपकी किताबें फेंक देते हैं। आपका चित्र घर में नहीं रहने देते। यह ठीक है। पति को ऐसा लगता होगा कि यह तो मामला गड़बड़ हुआ जा रहा है। किसी और की सुनने लगी! अब पत्नी की भी अड़चन समझो। पत्नी और पति से पूछे प्रश्न! पति भला ज्ञान ही क्यों न हो, हो भी सकता है ज्ञानी ही हो, मगर पत्नी पति से पूछे प्रश्न, यह भी संभव नहीं है! और पति यह बर्दाश्त नहीं कर सकता कि उनकी पत्नी और उनके रहते किसी और से प्रश्न पूछे ! ये अहंकार के जाल हैं! लेकिन इन सबका लाभ उठाया जा सकता है। ये गालियां भी तुम्हारे राह पर फूल बन सकती हैं, अगर इन्हें शांति से स्वीकार कर लो। इनसे उद्विग्न मत होना। इनसे विचलित भी मत होना। इसे स्वाभाविक मानना । पति का तुम्हारे ऊपर इतना कब्जा था, वह कब्जा खो गया। पति की मालकियत थी, वह मालकियत चली गई। पति चाहता है, तुम यहां मुझे सुनने मत आओ। पति चाहता है तुम ध्यान मत करो। लेकिन तुम पति की नहीं सुनती, मेरी सुनती हो । ध्यान करती हो। पति को लगता है, कब्जा गया। तो पति मुझ पर नाराज हैं। जिस आदमी के कारण कब्जा चला गया, उस आदमी को गालियां न दें तो बेचारे क्या करें! और कुछ कर भी नहीं सकते तो गालियां दे लेते हैं; कम से कम उनको गालियां तो देने की सुविधा रहने दो! उस पर झगड़ा मत करना । प्यार की तो भूल भी अनुकूल मेरे फूल मिलते रोक ही रखते रिझाते शूल हैं प्रतिपल मुझे आगे बढ़ाते इस डगर के शूल भी अनुकूल मेरे प्यार की तो भूल भी अनुकूल मेरे इन गालियों को भी तुम चाहो तो अनुकूल बना ले सकती हो। शूल हैं प्रतिपल मुझे आगे बढ़ाते फूल मिलते रोक ही रखते रिझाते पत्थर सीढ़ियां बन जाते हैं, अगर स्वीकार कर लो। प्यार के पल में जलन भी तो मधुर है। जानता हूं दूर है नगरी प्रिया की
SR No.032111
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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