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________________ है एक। एक अपूर्व रस है। गद्य होता है सूख सूखा, कामचलाऊ, मतलब का, अर्थपूर्ण। पद्य होता है अर्थहीन, अर्थमुक्त, अर्थशून्य; रसपूर्ण जरूर, अर्थपूर्ण नहीं। फूल खिला। पूछो, क्या अर्थ है? गद्य तो नहीं है वहां। क्योंकि अर्थ क्या है? गुलाब का फूल खिला, क्या अर्थ है? क्या प्रयोजन है? न खिलता तो क्या हानि थी? खिल गया तो क्या लाभ है? नहीं, बाजार की दुनिया में गुलाब के फूल में कुछ भी अर्थ नहीं। लेकिन पद्य बहुत है। गुलाब न खिलता तो सारी दुनिया बिना खिली रह जाती। गुलाब न खिलता तो सूरज उदास होता। गुलाब न खिलता तो चांद-तारे फीके होते। गुलाब न खिलता तो पक्षी गुनगुनातेनहीं। गुलाब न खिलता तो आदमी स्त्रियों के प्रेम में न पड़ते; स्त्रियां आदमियों के प्रेम में न पड़ती। गुलाब न खिलता तो बच्चे खिलखिलाते न, यह सारी खिलखिलाहट के साथ ही है गुलाब। यह गुलाब का खिलना इस महोत्सव का अनिवार्य अंग है। अर्थ कुछ भी नहीं है। गदय नहीं है यह, पदय है। पक्षी गीत गाते हैं: सार तो कुछ भी नहीं है। लेकिन क्या तुम निस्सार कह सकोगे? हाथ में पकड़ कर बाजार में बेचने जाओगे, कोई खरीददार न मिलेगा। लेकिन क्या तुम इसीलिए कह सकोगे कि इनका कोई मूल्य नहीं है? मूल्य बाजार में भला न हो, लेकिन किसी और तल पर इनका मूल्य है-हृदय के तल पर इनका मूल्य है। पक्षी की गुनगुनाहट हृदय के किन्हीं बंद तालों को खोल जाती है। तो मैं जो बोल रहा हूं वह पद्य ही है। मैं कोई कवि नहीं हूं निश्चित ही। लेकिन जो मैं तुमसे कहना चाह रहा हूं वह कविता है। और तुम उसे सुनोगे तुम उसे हृदय में धारण करोगे, तुम उसे अपने भीतर स्वागत करोगे, तो तुम पाओगे. अनंत- अनंत फूल तुम्हारे भीतर उससे खिलेंगे! जो मैं तुमसे कह रहा हूं वह पदय है और तुम्हारे भीतर प्रार्थना बन सकता है। थोड़ी राह दो। थोडा मार्ग दो। तम्हारे हृदय की भमि में यह बीज पड जाये तो इसमें फल निश्चित ही खिलने वाले हैं। यह पद्य ऊपर से प्रगट न हो, लेकिन यह पद्य तुम्हारे भीतर प्रगट होगा। और निश्चित ही जो मैं तुमसे कह रहा हूं वह मौन से आ रहा है। मौन से ही कहना चाहता हूं, लेकिन तुम सुनने में समर्थ नहीं हो। लेकिन जो मैं तुमसे कह रहा हूं वह मौन के लिए है; मौन से है और मौन के लिए है। जो शब्द मैं तुमसे कहता हूं वह मेरे शून्य से आ रहा है शून्य से सरोबोर है। तुम जरा उसे चबाना। तुम उसे जरा चूसना। तुम जरा उसे पचाना। और तुम पाओगे शब्द तो खो गया, शून्य रह गया। अगर तुमने चबाया न, पचाया न, तो शून्य का तो तुम्हें पता ही न चलेगा, शब्द खटकता रह जाएगा। तो शब्द को तुम इकट्ठे करके पंडित हो जाओगे। अगर मेरे शब्दों में से शून्य को संग्रहीत किया और शब्द की खोल को फेंक दिया तो तुम्हारी प्रज्ञा, तुम्हारा बोध जागेगा तुम्हारा बुद्धत्व जागेगा। शब्द तो खोल हैं जैसे कारतूस चल जाए तो चली कारतूस को क्या करोगे? चली कारतूस तो खोल है, असली चीज तो निकल गई। असली चीज जो मैं तुमसे कह रहा हूं, शून्य है, मौन है। तुम शब्द की खोल को तो फेंक देना। जैसे फल के ऊपर के छिलके को फेंक देते हो और भीतर का रस चूस लेते हो-ऐसे शब्द पर ध्यान
SR No.032111
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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