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________________ आंख के द्वार पर। तुम संसार के देखने वाले बन जाओ, एक दिन अचानक परमात्मा तुम्हारे द्वार पर खड़ा हो जाएगा। उसी परम दर्शन के लिए सारी तैयारी चल रही है। यह तो आंखों पर काजल आजना है-यह संसार जो है। यह तो आंखों को साफ करना है-यह संसार जो है। आंखें स्वच्छ हो जाएं, देखने की कला आ जाए, स्फूर्ति आ जाए, बोध आ जाए, फिर द्वार पर परमात्मा खड़ा है। और एक बार द्वार पर खड़ा हो गया कि सदा के लिए हो गया। जो एक ही बार आएगा सत्य की भीख मांगने आंख के द्वार पर। आंखें शून्य हो जाएं तो सत्य मिल जाए! मन मौन हो जाए तो प्रभु की वाणी प्रगट हो उठे। तुम मिट जाओ, तो परमात्मा इसी क्षण जाहिर हो उठे। मात्र है राजमार्ग अभिव्यक्ति का, शब्द, छंद, मात्रा, होती है शुरू मौन के बीहड़ से अनुभूति की यात्रा। जब तुम चुप हो जाते हो सब अर्थों में! आंख जब चुप हो जाती है, तब तुम वही देखते हो जो है। जब तक आंख बोलती रहती है, तुम वही देखते हो जो तुम्हारी वासना दिखलाना चाहती है। मुल्ला नसरुद्दीन एक राह से जा रहा है। अचानक झपटा। कोई चीज उठाई। फिर बड़े क्रोध से फेंकी और गालियां दीं। मैंने उससे पूछा : 'नसरुद्दीन!' मैं उसके पीछे-पीछे ही था।'यह मामला क्या हुआ| झपटे बड़ी तेजी से, कुछ उठाया भी, कुछ फेंका भी!' उसने कहा : कुछ ऐसे दुष्ट हैं कि अठन्नी जैसी खखार यूकते हैं। अठन्नी जैसी खखार! वह उनको गाली दे रहा है। जैसे उसके लिए किसी ने अठन्नी जैसी खखार यूंकी। वे खखार को उठा लिए। नाराज हो रहे हैं। आदमी वही देखता है, जो देखना चाहता है, जो उसकी वासना दिखलाना चाहती है। तुमने भी कई बार खखार उठा लिया होगा अठन्नी के भ्रम में। वह दिखाई नहीं पड़ता जो है। आंख के पास अपने प्रक्षेपण हैं। आंख वही दिखलाना चाहती है। तुम कभी ऐसा भी देखो। तुम रोज जिस बाजार में जाते हो, उसमें जब तुम जाते हो अलग-अलग भावनाएं ले कर तुम्हें अलग-अलग चीजें दिखाई पड़ती हैं। अगर तुम भूखे जाओ तुम्हें होटल, रेस्तरा इसी तरह की चीजें दिखाई पड़ेगी; जूते की दूकान बिलकुल दिखाई न पड़ेगी। अगर तुम्हारा दिमाग खराब हो तो बात अलग है; नहीं तो जूते की दूकान नहीं दिखाई पड़ेगी। उपवास करके बाजार में जाना, सब तरफ से तुम्हें. बाकी सब चीजें फीकी पड़ जाएंगी, हट जाएंगी, उनका महत्व न रहा। लेकिन जब तुम भरे पेट जाते हो, तब बात अलग हो जाती है। तुम देखने वाले हो। तुम चुनाव कर रहे हो।
SR No.032111
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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