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________________ और बीच में तू रीता है? गा। गुनगुनाओ! नाचो ! हंसो ! प्रभु की अनुकंपा को स्वीकार करो। : पुराना संन्यास प्रभु का विरोध है। वह कहता है तुमने जो दिया उसे हम स्वीकार न करेंगे। पुराना संन्यास यह कह रहा है: 'तुमने गलत दिया । माया में उलझा दिया ।' मैं तुमसे कह रहा हूं कि अगर प्रभु ने माया में डाला, तो जरूरत होगी; तो आवश्यक होगा। तुम प्रभु से अपने को ज्यादा समझदार मत मान बैठना। तुम उसे स्वीकार करना अहोभाव से, गुनगुनाते हुए दुख हो तो भी गाना । गाने से मत चूकना। दुख हो तो दुख का गीत गाना । सुख हो, सुख का गीत गाना - मगर गाना । तुम्हारे जीवन में गुनगुनाहट समा जाए तो तुम्हारे जीवन में प्रार्थना का पदार्पण हो गया। मंदिर की तरफा उदास और लंबे चेहरे जैसे तुम्हें नापसंद हैं कौन पसंद करता है उदास लंबे चेहरों के पास बैठना ! कभी तुम साधु-संतो के पास थोड़ी देर रहे? लोग जल्दी से नमस्कार करके भागते हैं कि महाराज, अब जायें! सेवा करने जाते हैं - मतलब चरण छू लिए और भागे । कोई साधु-संतो के पास बैठता नहीं। चौबीस घंटे भी अगर तुम किसी साधु के पास रह जाओ तो या तो उसकी गर्दन दबा दोगे या अपनी दबा लोगे । और नाचते हुए चलना प्रभु के वैसे ही परमात्मा को भी नापसंद हैं। उदास! मरुस्थल! मरघट जैसी हवा! जहां फूल नहीं खिलते! जहां फूल खिलने बंद हो गए! जहां कोई गीत नहीं जन्मता, जगता। जहां जीवन में उल्लास नहीं, प्रफुल्लता नहीं है! नहीं, ऐसे संन्यासी को मैं सत्यानाशी कहता हूं। तुम गाओ। तुम नाचो | | तुम कृतज्ञता से भरी। तुम प्रभु को धन्यवाद दो कि खूब परीक्षाएं तुमने जमायी-गुजरेंगे, पार करेंगे। पक कर ही आएंगे तेरे द्वार पर ! अगर तूने भेजा है, प्रयोजन होगा। हम कौन जो बीच से भाग जाएं! कृष्ण ने अर्जुन से इतना ही कहा है कि तू भाग मता गीता पढ़ते हैं लोग, लेकिन गीता समझी नहीं गई। कृष्ण ने इतना ही कहा कि भाग मत। यह युद्ध अगर परमात्मा देता है तो सही है। भरोसा कर! समर्पण कर! उतर युद्ध में, जूझ, जो प्रभु दे उसमें ही भर । निमित्त मात्र हो! अपनी बीच में मत अड़ा। मत कह कि मैं तो भाग कर संन्यासी होना चाहता हूं। वह संन्यासी होना चाहता था - पुराने ढब का। वह कह रहा था कि इसमें क्या सार है! इनको - अपनों को मारना ! मैं चला जाऊं, जंगल में बैठ जाऊंगा झाड़ के नीचे । ध्यान लगाऊंगा, समाधि साधूंगा।' कृष्ण उसे खींचते हैं। कहते हैं, जंगल जाने की जरूरत नहीं, तू यहीं जूझ प्रभु जो कराए, करो। कर्ता - भाव भर मत रखो। साक्षी बन जाओ। वह जो करवाए, करो। जो पाठ दे दे, उसे पूरा कर दो, जैसे रामलीला के मंच पर तुम अपने को बीच में मत लाओ। हम बीच-बीच में आ जाते हैं। एक गांव में रामलीला होती थी। लक्ष्मण बेहोश पड़े हैं। हनुमान को जड़ी-बूटी लेने भेजा है।
SR No.032111
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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