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________________ पड़ गया, तो तुम तो सीधे खड़े हो, भले – चंगे, तुम्हें आकाश दिखाई न पड़ेगा? जनक को समझ में आ गया सारे राग-रंग के बीच, सारे वैभव, उपद्रव के बीच, बाजार के बीच - तो तुम्हें समझ में न आयेगा ? तुम पर तो प्रभु की बड़ी कृपा है उतना राग-रंग भी नहीं दिया, उतना बाजार भी नहीं दिया, जितना जनक को था । जनक को भी समझ में आ गया, तुम्हें भी आ सकता है। एक आदमी को हुआ वह सभी को हो सकता है। जो एक आदमी की क्षमता है वह सभी आदमियों की क्षमता है। आदमी आदमी एक-सा स्वभाव ले कर आये हैं, एक-सी संभावना ले कर आये हैं। तो मैं तुम्हारे ऊपर की थोड़ी बात कहूं तो तुम नाराज मत होना। हालांकि यह मैं खयाल रखता हूं कि बात बहुत ऊपर न चलीजाये; बिलकुल ही, तुम्हारी समझ के बिलकुल बाहर न हो जाये। थोड़ा तुम्हारी समझ को खनकाती रहे। दूर की ध्वनि की तरह तुम्हें सुनाई पड़ती रहे। पुकार आती रहे। तो तुम धीरे- धीरे इस रस्सी में बंधे.. । माना कि यह धागा बड़ा पतला है, मगर इस धागे में अगर तुम बंध गये तो खींच लिये जाओगे। तुम जहां हो अभी चाहता हूं कि तुम्हें समझ में आ जाये कि तुम कारागृह में हो । राजमहल का पाहुन जैसा तृण - कुटिया वह भूल न पाये जिसमें उसने हों बचपन के नैसर्गिक निशि - दिवस बिताये मैं घर की ले याद कड़कती भड़कीले साजों में बंदी तन के सौ सुख सौ सुविधा में मेरा मन बनवास दिया - सा । सुभग तरंगें उमग दूर की चट्टानों को नहला आतीं तीर - नीर की सरस कहानी फेन लहर फिर-फिर दोहराती औ' जल का उच्छवास बदल बादल में कहा- कहा जाता है ! लाज मरा जाता हूं कहते मैं सागर के बीच प्यासा तन के सौ सुख सौ सुविधा में मेरा मन बनवास दिया-सा !
SR No.032111
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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