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________________ तो हैं दोहराने वाले! सदियों से दोहरा रहे हैं। उनके दोहराने से कुछ भी नहीं हुआ। दोहराओगे कहां से? दोहराना तो मन के ही यंत्र में घटता है। चाहे जोर से दोहराओ, चाहे धीरे दोहराओ-दोहराता तो मन है। हर दोहराने में मन ही मजबूत होता है। क्योंकि जिसका तुम प्रयोग करते हो वही शक्तिवान हो जाता है। __ मैं तुम्हें कह रहा हूं कि साक्षी बनो ये मन की जो प्रक्रियाएं हैं, ये जो मन की तरंगें हैं, तुम इनके द्रष्टा बनो। तुम इन्हें बस देखो। तुम इसमें से कुछ भी चुनो मता कोई फिल्मी गीत गुनगुना रहा है, तो तुम कहते : अधार्मिक; और कोई भजन गा रहा है तो तुम कहते हो : धार्मिक! दोनों मन में हैं-दोनों अधार्मिक। मन में होना अदयर्म में होना है। उस तीसरी बात को सोचो जरा। खड़े हो, मन चाहे फिल्मी गीत गुनगुनाए और चाहे राम कथा-तुम द्रष्टा हो। तुम सुनते हो देखते हो, तुम तादात्म्य नहीं बनाते। तुम मन के साथ जुड़ नहीं जातो तुम्हारी दूरी, तुम्हारी असंगता कायम रहती है। तुम देखते हो मन को ऐसे ही जैसे कोई राह के किनारे खड़े हुए चलते हुए लोगों को देखे साइकिलें, गाड़ियां, हाथी-घोड़े, कारें, ट्रक, बसें:। तुम राह के किनारे खड़े देख रहे हो। तुम द्रष्टा हो। अष्टावक्र का भी सारा सार एक शब्द में है-साक्षी। मंत्र तो बोलते ही तुम कर्ता हो जाओगे। बड़ा सूक्ष्म कर्तृत्व है, लेकिन है तो! मंत्र पढ़ोगे, प्रार्थना करोगे, पूजा करोगे-कर्ता हो जाओगे। बात थोड़ी बारीक है। थोड़ा प्रयोग करोगे तो ही स्वाद आना शुरू होगा। जो चल रहा है, जो हो रहा है, वही काफी है; अब और मंत्र जोड़ने से कुछ अर्थ नहीं है। इसी में जागो। इसको ही देखने वाले हो जाओ। इससे संबंध तोड़ लो। थोड़ी दूरी, थोड़ा अलगाव, थोड़ा फासला पैदा कर लो। इस फासले में ही तुम देखोगे मन मरने लगा। जितना बड़ा फासला उतना ही मन का जीना मुश्किल हो जाता है। जब तुम मन का प्रयोग नहीं करते तो मन को ऊर्जा नहीं मिलती। जब तुम मन का सहयोग नहीं करते तब तुम्हारी शक्ति मन में नहीं डाली जाती। मन धीरे-धीरे सिकुड़ने लगता है। यह तुम्हारी शक्ति से मन फूला है, फला है। तुम्हीं इसे पीछे से सहारा दिये हो। एक हाथ से सहारा देते हो, दूसरे हाथ से कहते हो: कैसे छुटकारा हो इस दुख से? इस नर्क से? तुम सहारा देना बंद कर दो, इतना ही साक्षी का अर्थ है। मन को चलने दो अपने से, कितनी देर चलता है? जैसे कोई साइकिल चलाता है, तो पैडल मारता तो साइकिल चलती है। साइकिल थोड़े ही चलती है, वह जो साइकिल पर बैठा है, वही चलता है। साइकिल को सहारा देता जाता है, साइकिल भागी चली जाती है। तुम पैडल मारना बंद कर दो, फिर देखें साइकिल कितनी देर चलती है! थोड़ी-बहुत चल जाए, दस-पचास कदम, पुरानी दी गयी ऊर्जा के आधार पर; लेकिन ज्यादा देर न चल पाएगी, रुक जाएगी। ऐसा ही मन है। मंत्र का तो अर्थ हुआ पैडल मारे ही जाओगे| पहले भजन या फिल्म का गीत गुनगुना रहे थे, अब तुमको किसी ने मंत्र पकड़ा दिया दोहराओ ओम, राम-उसे दोहराने लगे, दोहराना जारी रहा। पैडल
SR No.032111
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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