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________________ मैं तुम्हारी तकलीफ भी जानता हूं। तुम्हें हंसने में कठिनाई होती है। तुम हंसते हो कंजूसीसे । रोने मैं तुम बड़े मुक्तहस्त होते हो। हंसते हो तुम बामुश्किल क्षण भर को फिर हंसी खो जाती है, सूख जाती है। रोने लगो तो तुम घड़ियों रोते हो । रोने लगो तो दूसरे समझाएं तो भी तुम नहीं समझते। दूसरे पुचकारें- थपकाएं, तो भी तुम नहीं मानते, और रोते चले जाते हो। हंसते हो तो बस जरा-जैसे जबर्दस्ती; जैसे मुश्किल से, जैसे हंसना पड़ा सो हंस लिए- फिर खो जाती है हंसी । जानता हूं कारण भी, जीवन में तुम्हारे सिवाए दुख के और कुछ भी नहीं है। इतना रोया हूं गम-ए-दोस्त जरा-सा हंस कर मुस्कुराते हुए लमहात से जी डरता है। तुम इतने रोए हो, इतने दुखी हुए हो कि तुम घबड़ाते हो। हंसना तुम्हें मौजू नहीं मालूम पड़ता तुम्हारे साथ ठीक-ठीक नहीं बैठता - विजातीय मालूम पड़ता है, अजनबी मालूम पड़ता है। रोने से तुम्हारा साथ-संग है, परिचय है पुराना, हंसने से तुम्हारा कोई संबंध नहीं। और अगर कभी तुम हंसते भी हो, तो तुम्हारी हंसी में भी कुछ रुदन की छाप होती है, कुछ रोना होता है। तुम्हारी हंसी भी मुक्त नहीं होती है, तुम्हारी हंसी भी शुद्ध नहीं होती, कुंआरी नहीं होती, उस पर दाग होते हैं आंसुओ के । तुम गौर करना, तुम्हारी हंसी ठीक हृदय से नहीं उठती, शून्य से नहीं आती। तुम मेरे भीतर झांकोगे, तो एक बात निश्चित है कि मैं तुम्हारे जैसा नहीं हंसता । तुम्हारे जैसा हंसने के लिए मुझे तुम्हारे जैसा होना पड़े। मेरी हंसी किसी और तल पर है। तुम उस तल पर आओगे तो पहचानोगे। अष्टावक्र कहते हैं. उस अवस्था को जानने के लिए वैसी ही अवस्था चाहिए । ईसाई कहते हैं जीसस कभी हंसे नहीं। यह बात झूठी है। मगर ईसाई भी ठीक ही कहते हैं, क्योंकि जिस तल पर हंसी को समझ सकते हैं, उस तल पर ईसा कभी नहीं हंसे। जिस तल पर मैं हंसी को समझता हूं, मैं जानता हूं ईसा खिलखिलाते रहे सूली पर भी हंस रहे थे। तुम बुद्ध की हंसती हुई मूर्ति देखी? असंभव । तुमने महावीर की खिलखिलाहट सुनी? असंभव । अगर महावीर की हंसती हुई मूर्ति बना दो जैनी तुम पर मुकदमा चला देंगे, अदालत में घसीटेंगे कि इन्होंने हमारे महावीर का चेहरा बिगाड़ दिया। महावीर, और हंसते हुए? यह हो ही नहीं सकता! एक बात ठीक भी है, तुम्हारे जैसे महावीर कभी हंसे भी नहीं । तुम्हारी हंसी में तो रोने की छाप है महावीर की हंसी बड़ी मौन है, शांत है- महावीर जैसी शांत है, निर्विकार है। शायद हंसी में खिलखिलाहट नहीं है। खिलखिलाहट हो भी नहीं सकती । शून्य से उठती है, शून्य का स्वाद लिए है। लेकिन हंसी निश्चित है। पर तुम तभी जान पाओगे, जब तुम उन दशाओं को उपलब्ध होओगे। रचना का दर्द छटपटाता है ईश्वर बराबर अवतार लेने को अकुलाता है दूसरों से मुझे जो कुछ कहना है वह बात प्रभु पहले मुझसे कहते हैं
SR No.032111
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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