SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 246
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ झूठा संन्यासी हूं और इतना समादर इतना आदर मिल रहा है - काश मैं सच्चा होता! मैंने बहुत संन्यासियों को देखा घूम कर सारे देश में, निन्यानबे प्रतिशत बुद्धिहीन हैं, जड़बुद्धि हैं। वे जीवन में कहीं सफल न हो सकते थे। अंगसे तक पहुंच न सके चिल्लाने लगे कि खट्टे हैं। उनकी सुन कर तुम लौट मत पड़ना; अन्यथा कभी विरसता पैदा न होगी, रस बना रहेगा। 'विषयों में विरसता मोक्ष है, विषयों में रस बंध है।' और अष्टावक्र कहते हैं. इतना ही जनक विज्ञान है, इतना ही विज्ञान है । ' 'विज्ञान' शब्द बड़ा अदभुत है। विज्ञान का अर्थ होता है : विशेष ज्ञान । ज्ञान तो ऐसा है जो दूसरे से मिल जाए। विज्ञान ऐसा है जो केवल अपने अनुभव से मिलता है, इसीलिए विशेष ज्ञान | किसी कहा तो ज्ञान: खुद हुआ तो विज्ञान। साइंस को हम विज्ञान कहते हैं क्योंकि साइंस प्रयोगात्मक है अनुभवसिद्ध है, बकवास बातचीत नहीं है; प्रयोगशाला से सिद्ध है। इसी तरह हम अध्यात्म को भी विज्ञान कहते हैं। वह भी अंतर की प्रयोगशाला से सिद्ध होता है। सुना हुआ-ज्ञान; जाना हुआ - विज्ञान | यह वचन खयाल रखना. एतावदेव विज्ञानम् अष्टावक्र कहते हैं : और कुछ जानने की जरूरत नहीं, बस इतना विज्ञान है। विरस हो जाए तो मोक्ष, रस बना रहे तो बंधन। ऐसा जान कर फिर तू जैसा चाहे वैसा कर। फिर कोई बंधन नहीं, फिर तू स्वच्छंद है। फिर तू अपने छंद से जी - अपने स्वभाव के अनुकूल फिर तुझे कोई रोकने वाला नहीं। न कोई बाहर का तंत्र रोकता है, न कोई भीतर का तंत्र रोकता है। फिर तू स्वतंत्र है। तू तंत्र मात्र से बाहर है, स्वच्छंद है। यथेच्छसि तथा कुरु ! फिर कर जैसा तुझे करना है। फिर जैसा होता है होने दे। इतना ही जान ले कि रस न हो । फिर तू महल में रह तो महल में रह-रस न हो। और रस हो और अगर तू जंगल में बैठ जाए तो भी कुछ सार नहीं। मुल्ला नसरुद्दीन की पत्नी उससे पूछ रही थी कि तुम इतने सुंदर हो नसरुद्दीन फिर भी पता नहीं, तुम अक्ल से कोरे क्यों हो? भगवान ने तुम्हें सुंदर बनाया, अक्ल से कोरा क्यों रखा? इसका क्या कारण है? नसरुद्दीन ने कहा. कारण स्पष्ट है। भगवान ने मुझे सौंदर्य इसलिए प्रदान किया कि तुम मुझसे विवाह कर सको और अक्ल से इसलिए कोरा रखा कि मैं तुमसे विवाह कर सकूं। अक्ल से कोरे हो तुम, तो संसार से विवाह चलेगा, बच नहीं सकते, भागो कहीं भी । जगह-जगह से संसार तुम्हें पकड़ लेगा । और अक्ल से भरे होने का एक ही उपाय है-अनुभव से भरे होना । अनुभव का निचोड है बुद्धिमत्ता । तो जितना तुम अनुभव कर सको उतना शुभ है। घबड़ाना मत भूल करने से। जो भूल करने से डरता है वह कभी अनुभव को उपलब्ध ही नहीं होता । भूल तो करो, दिल खोल कर करो; एक ही
SR No.032111
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy