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________________ तुम्हारा स्वच्छंद भाव हो रहा है कि बीच में चलें, तो भी मत चलना, क्योंकि उससे कोई सार नहीं है। उस स्वच्छंदता से कुछ लेना-देना भी नहीं है। तुम बायें ही चलना। क्योंकि अगर सभी स्वच्छंद चलें तो राह पर चलना ही मुश्किल हो जायेगा। नियम से भी चलो तो भी कितनी झंझट है, राह से चलना मुश्किल हो रहा है। नियम से ही चलना। वह सहज स्वीकार है। वह भी बोधपूर्वक स्वीकार करना कि इतनी हम कीमत चुकाते हैं भीड़ के साथ रहने की। नब्बे प्रतिशत हम अपने को मुक्त करते हैं और प्रभु के लिए अर्पित होते हैं, दस प्रतिशत कीमत चुकाते हैं भीड़ के साथ रहने की। कीमत तो चुकानी पड़ती है हर चीज के लिए। बिना मूल्य तो कुछ भी नहीं है। लेकिन एक बात ध्यान रखना कि धर्म का संबंध भीड़ से नहीं है, धर्म का संबंध तो सहजता से है। सहजता व्यक्ति की है। आत्मा व्यक्ति के पास है; भीड़ के पास कोई आत्मा नहीं है। पूछा है. 'आदिकाल से संत महापुरुषों ने सदकर्म की प्रेरणा दी है।' अधिकतर तो उपद्रव का कारण ये संत महापुरुष ही हैं। इनमें सभी ज्ञान को उपलब्ध व्यक्ति नहीं हैं। तुम्हारे सौ संत महापुरुषों में शायद एकाध जीवन मुक्त है, बाकी तो भीड़ के ही हिस्से हैं। बाकी का तो धर्म से कोई संबंध नहीं है। सच्चरित्र होंगे। लेकिन सच्चरित्र का क्या अर्थ होता है? सच्चरित्र का अर्थ होता है : जो समाज की मान कर चलता है, समाज ने जो नियम निर्धारित किये हैं, जो उनकी मर्यादा को स्वीकार करता है। इसलिए तुम देखते हो, राम की बड़ी प्रतिष्ठा है! कृष्ण का लोग नाम भी लेते हैं तो भी जरा डरे -डरे। कृष्ण का भक्त भी कृष्ण की बात करता है तो चुनाव करता है। जैसे सूरदास कृष्ण के केवल बचपन के गीत गाते हैं, जवानी तक जाने में सूरदास डरते मालूम पड़ते हैं। क्योंकि जवानी में फिर खतरा है। बचपन तक ठीक है। दूध की दुहनिया तोड़ रहे, ठीक है। लेकिन जवान जब तोड़ने लगता है तो फिर झंझट है। तो सूरदास चुनाव कर लेते हैं -बालकृष्ण! बस वहा से आगे नहीं बढ़ते वे। बस बालक को ही फुदकाते रहते हैं। पांव की पैजनिया और फुदक रहे बालक! उससे आगे नहीं जाने देते, क्योंकि वहां तक वे छेडूखान करें, चलेगा। लेकिन जब वे जवान हो जाते हैं और स्त्रियों के कपड़े चुरा कर वृक्षों पर बैठने लगते हैं, तब जरा अड़चन आती है, वहा सूरदास झिझक जाते हैं। अधिकतर तो लोग कृष्ण की मान्यता गीता के कारण करते हैं। बस गीता तक उनके कृष्ण पूरे हैं, भागवत तक नहीं जाते। भागवत में खतरा है। गीता के कृष्ण स्वीकार हैं; वहा कुछ अड़चन नहीं है। ___ लेकिन राम पूरे के पूरे स्वीकार हैं। तुमने इस फर्क को देखा? राम शुरू से ले कर अंत तक स्वीकार हैं। वे मर्यादा पुरुषोत्तम हैं। वे ठीक वैसा करते हैं जैसा करना चाहिए। कृष्ण भरोसे के नहीं हैं। कृष्ण बहुत स्वच्छंद हैं स्वचेतना से जीते हैं। लेकिन अगर तुम समझोगे तो जिन्होंने जाना, उन्होंने राम को तो कहा है अंशावतार और कृष्ण को कहा पूर्णावतार। मतलब साफ है। राम में तो अंशरूप में ही परमात्मा है, कृष्ण में पूरे रूप में है। क्योंकि स्वच्छंदता पूर्ण है। राम में तो कहीं-कहीं छींटे हैं परमात्मा के कृष्ण तो पूरी गंगा हैं। लेकिन कृष्ण को अंगीकार करने की सामर्थ्य चाहिए।
SR No.032111
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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