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________________ चलने लगे। अब यह बड़े मजे की बात है! पहले तो सवाल था कि हिंदू -मुसलमान चलो विपरीत धर्म हैं तो झगड़ा है; अब हिंदू हिंदू से लड़ने लगा! गुजराती भी हिंदू है, मराठी भी हिंदू है; लेकिन बंबई पर किसका कब्जा हो! तो छुरे चलने लगे। ऐसा लगता है, आदमी वही का वही है। तुम जरा छोड़ दो, गुजराती को अलग कर दो बंबई से-मराठी मराठी से लड़ेगा। देशस्थ है कि कोकणस्थ? विनोबा से किसी ने पूछा कि आप देशस्थ ब्राह्मण हैं कि कोकणस्थ? विनोबा ने कहा. 'मैं स्वस्थ ब्राह्मण हूं। बात तो ठीक है, लेकिन बहुत ठीक नहीं। स्वस्थ होना काफी है, ब्राह्मण जैसे गंदे शब्द को बीच में क्यों लाए? इतना ही कह देते, मैं स्वस्थ हूं। स्वस्थ होने का मतलब ही ब्राह्मण होता है। स्वयं में जो स्थित हो गया, स्वस्थ, वह ब्राह्मण। यह पुनरुक्ति काहे को की कि मैं स्वस्थ ब्राह्मण हूं? क्योंकि इसमें खतरा है। कल स्वस्थ ब्राह्मण अलग झंडा लेकर खड़े हो जाते हैं कि मारो कोकणस्थों को, मारो देशस्थों को, हम स्वस्थ ब्राह्मण हैं! मगर ब्राह्मण हैं! विनोबा कृपा करते, ब्राह्मण को और काट देते, स्वस्थ होना काफी है। आदमी स्वस्थ हो, बस पर्याप्त है। स्वयं में हो, बस पर्याप्त है! मगर बहुत थोड़े-से व्यक्ति ही स्वयं में हो पाते हैं, भीड़ नहीं हो पाती, भीड़ हो भी नहीं सकती। देखा है भीड़ को ढोते हुए अनुशासन का बोझ उछालते हुए अर्थहीन नारे लड़ते हुए दूसरों का युद्ध खोदते हुए अपनी कब्र पर नहीं सुना कभी तोड़ लिया हो किसी भीड़ ने बलात व्यक्ति की अंतश्चेतना में खिला अनुभूति का अम्लान पारिजात! व्यक्ति की चेतना के जो फूल हैं, वे भीड़ ने कभी नहीं तोड़े, भीड़ तोड़ सकती नहीं। भीड़ कभी बद्ध नहीं बनती। कोई व्यक्ति बद्ध बनता है। मेरे पास लोग आते हैं कि आप समाज के लिए कुछ क्यों नहीं करते? व्यक्ति के लिए ही कुछ किया जा सकता है, समाज के लिए कुछ किया नहीं जा सकता। और जैसे ही तुम समाज के लिए कुछ करने को तत्पर होते हो वैसे ही तुम राजनीति में उतर जाते हो। धर्म का संबंध व्यक्ति से है, समाज का संबंध राजनीति से है। धर्म का कोई संबंध समाज से नहीं है। धर्म तो असामाजिक है। धर्म तो व्यक्तिवादी है। क्योंकि धर्म तो व्यक्ति की परिपूर्ण स्वतंत्रता में भरोसा करता है, स्वच्छंदता में। पूछते हो : 'मानव-जीवन में झूठ से लेकर बलात्कार और हत्या तक के अपराध फैले हैं।' सदा फैले रहे हैं, सदा फैले रहेंगे। यह तो ऐसा ही है जैसे कि कोई मेरे पास आ कर कहे कि
SR No.032111
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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