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________________ सुन लोगे अगर बैठ कर रोज तो पाठ हो जायेगा। खयाल रखना, वेद के पढ़ने से थोड़े ही ज्ञान का जन्म होता है। पढ़ना तो एक निमित्त है। कोई निमित्त तो बनाना ही होगा, ताकि साक्षी बने। साक्षी को जगाने के लिए निमित्त है। और वेद से प्यारा निमित्त कहां खोजोगे! कुरान से और ज्यादा मधुर निमित्त कहां खोजोगे! क्योंकि कुरान आया किसी ऐसे व्यक्ति के चैतन्य से जो ज्ञान को उपलब्ध हो गया था; कुरान के उन वचनों में मुहम्मद की चेतना थोड़ी न थोड़ी लिपटी रह गई है। मुहम्मद का स्वाद इनमें होगा ही। मुहम्मद के शून्य से उठे हैं ये स्वर। मुहम्मद का संगीत इनमें होगा ही। वेद उठे हैं ऋषियों की अंतःप्रज्ञा से, तो जहां से उठती है चीज, वहां की कुछ खबर तो रखती ही होगी। गंगा कितनी ही गंदी हो जाये तो भी गंगोत्री के जल का कुछ हिस्सा तो शेष रहता ही है। अच्छे उपकरण हैं, लेकिन ध्यान रखना : उपकरण हैं। असली काम जागने का है। इधर गीत दोहराते रहना, वेद का, कुरान का, बाइबिल का। उधर पीछे जाग कर देखते रहना। डूब मत जाना, बेहोश मत हो जाना, नहीं तो पाठ हो जायेगा, स्मृति भी बन जायेगी, एक दिन ऐसी घड़ी आ जायेगी कि तुम बिना किताब को सामने रखे दोहरा सकोगे लेकिन उससे तुम्हारे जीवन में क्रांति घटित न होगी। पाठ पाठ में निश्चित ही भेद है। बेहोशी में जो भी बीत रहा है वह बेहोशी को मजबूत कर रहा है। जो होश में बीतता है वह होश को मजबूत करता है। इसलिए जितने ज्यादा से ज्यादा क्षण होश में बीतें उतना शुभ है। भोजन करो तो होश । इसलिए तो कबीर कहते हैं : 'उठू -बैलूं? सो परिक्रमा!' अब मंदिर जाने की और परिक्रमा करने की भी कोई बात न रही। अब तो उठता-बैठता हूं तो वह भी परिक्रमा है।'खाऊं-पीऊं सो सेवा!' अब कोई परमात्मा की उपासना करने की जरूरत नहीं, मंदिर में जा कर भोग लगाने की भी कोई जरूरत नहीं। खुद भी खाता-पीता हूं वह भी सेवा हो गई है। क्योंकि जो खुद भी खा पी रहा हूं वहां भी जाग र देख रहा हूँ कि यह भी परमात्मा को ही दिया गया। यहां परमात्मा के अतिरिक्त कुछ और है ही नहीं। जाग कर देखने लगोगे तो प्रत्येक कृत्य पूजा हो जाता है और प्रत्येक विचार और प्रत्येक तरंग उसी के चरणों में समर्पित हो जाती है। सभी उसका नैवेदय बन जाता है और सारा जीवन अर्चना हो जाती है। लो एक क्षण और बीता हम हारे, युग जीता। बेहोशी में गया क्षण तो हार गये। लो एक क्षण और बीता __ हम हारे, युग जीता। होश में गया क्षण कि तुम जीते, युग हारा।
SR No.032111
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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