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________________ दिनांक 18 नवंबर, 1976; श्री रजनीश आश्रम, पूना । प्रश्न सारः पहला प्रश्न : जागते-जागते जाग आती है-प्रवचन- आठवां आपने शास्त्र-पाठ की महिमा बताई। लेकिन ऐसे कुछ लोग मुझे मिले हैं जिन्हें गीता या रामायण कंठस्थ है और जो प्राय: नित्य उसका पाठ करते हैं, लेकिन उनके जीवन में गीता या रामायण की सुगंध नहीं। तो क्या पाठ और पाठ में फर्क है? और सम्यक पाठ कैसे हो? निश्चय ही पाठ और पाठ में फर्क है। यंत्रवत दोहरा लेना पाठ नहीं। कंठस्थ कर लेना पाठ नहीं। हृदयस्थ हो जाये तो ही पाठ। और हृदय तक पहुंचाना हो तो अत्यंत जागरूकता से ही यह घटना घट सकती है। कंठस्थ कर लेना तो जागने से बचने का उपाय है। जिस काम को करने में तुम कुशल हो जाते हो उसमें जागरूकता की जरूरत नहीं रह जाती। नये-नये कार चलाओ, नया-नया तैरने जाओ, नई-नई साइकिल चलानी सीखो, तो बड़ा होश रखना पड़ता है; जरा चूके कि गिरे। चूक महंगी पड़ती है। होश रखना जरूरी हो जाता है। लेकिन जैसे ही साइकिल चलानी आ गई, कार चलानी आ गई, तैरना आ गया, फिर वैसे-वैसे होश मद्धिम हो जाता है, फिर कोई जरूरत नहीं रहती । फिर तुम सिग्रेट पीयो, गाना गाओ, रेडियो सुनो और कार चलाओ, मित्र से बात करो, हजार बातें सोचो.. । धीरे- धीरे कार चलाना इतना यंत्रवत हो जाता है कि मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि कभी-कभी ड्राइवर आख भी झपका कर क्षण भर को सो लेता है और गाड़ी चलती रहती है। करीब अधिकतम दुर्घटनायें तीन और चार बजे के बीच होती हैं रात में। मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि उस क्षण गहरी नींद का क्षण है: ड्राइवर की आख झपक जाती है और वह सोचता है सपने में कि उसे राह दिखाई पड़ रही है, तब दुर्घटना घट जाती है। जैसे-जैसे व्यक्ति कुशल हो जाता है किसी काम में वैसे-वैसे होश की जरूरत नहीं रह जाती। तो पाठ कुशलता के लिए नहीं कहा है मैंने कि तुम कंठस्थ कर लेना । उसी कुशलता में तो यह देश मरा। यहां ऐसे लोग थे जिन्हें वेद कंठस्थ था, लेकिन जीवन में कोई वेद का प्रस्फुटन न हुआ, फूल न खिले, सुगंध न आई। कहते हैं, सिकंदर वेद की एक संहिता को यूनान ले जाना चाहता था और उसने पंजाब के एक
SR No.032111
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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