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________________ जनक कहते हैं : 'जो भीतर विकल्प से शून्य है और बाहर भ्रांत हुए पुरुष की भांति है ऐसे स्वच्छंदचारी की भिन्न-भिन्न दशाओं को वैसी ही दशा वाले पुरुष जानते हैं।' __ अगर तुम्हें बुद्ध को जानना हो तो बाहर से जानने का कोई उपाय नहीं है, जब तक वैसी ही दशा तुम्हारी न हो जाए; जब तक तुम भी बुद्धत्व को उपलब्ध न हो जाओ और भीतर से न देखने लगो। बाहर से तो सब तुम्हारे जैसा है। वे भी हड्डी-मास-मज्जा के बने हैं। शरीर की जो जरूरतें तुम्हारी हैं, उनकी भी हैं। देह जीर्ण होगी, शीर्ण होगी, बुढ़ापा आएगा, मृत्यु भी होगी। झूठी बातो में मत पड़ना। ऐसा मत सोचना कि बुद्ध तुमसे भिन्न हैं। दावा करते हैं लोग। बुद्धों ने दावा नहीं किया है, शिष्यों ने दावा किया है। क्योंकि शिष्य सिद्ध करना चाहते हैं कि बुद्ध तुमसे भिन्न हैं; तुम कंकड़-पत्थर, वे हीरे-मोती! पर हीरे-मोती भी कंकड़-पत्थर हैं। भेद तो जरूर है, लेकिन भेद भीतर का है, बाहर का नहीं है। बाहर तो सब वैसा ही है जैसा तुम्हारा है। और जो बाहर से भेद दिखाने की कोशिश करे, वह तुम जैसे ही धोखे में पड़ा है। बाहर से भेद दिखाने की बात ही नहीं है। और भीतर का भेद तुम तभी देख पाओगे जब तुम्हारे भी भीतर थोड़ा प्रकाश हो जाएगा। ये वचन सोचो अंतर्विकल्पशन्यस्य बहि: स्वच्छंदचारिण। भ्रांतस्येव दशास्तास्तास्तादृशा एव जानते। जिसकी वैसी ही दशा हो जाएगी, वही जानेगा। कृष्ण हो जाओ तो गीता समझ में आए; बुद्ध हो जाओ तो धम्मपद; मुहम्मद की तरह गुनगुनाओ तो कुरान समझ में आए। अन्यथा तुम कंठस्थ कर लो कुरान, कुछ भी न होगा। जो भीतर की चैतन्य की दशा है, वह तो तुम्हारे ही अनुभव से तुम्हें समझ में आनी शुरू होगी। जिसने प्रेम किया है वह प्रेमी को देख कर समझ पाएगा कि भीतर क्या हो रहा है। जिसने कभी प्रेम नहीं किया, वह मजनू को खाक समझेगा! मजनू को पागल समझेगा। पत्थर फेंकेगा मजनू पर। कहेगा, तुम्हारा दिमाग खराब है। लेकिन जिसने प्रेम किया है वह मजनू को समझेगा। जिसने कभी भक्ति का रस लिया है, वह मीरा को समझेगा। अब जिसने भक्ति का कभी रस नहीं लिया, उससे मीरा के बाबत पूछना ही मत। फ्रायड से मत पूछना मीरा के बाबत, अन्यथा तुम्हारी फजीहत होगी, मीरा तक की फजीहत हो जाएगी। फ्रायड तो कहता है कि यह मीरा.। ठीक-ठीक मीरा के लिए फ्रायड ने नहीं कहा, क्योंकि फ्रायड को मीरा का कोई पता नहीं; लेकिन मीरा की जो पर्यायवाची स्त्री-संत पश्चिम में हुई थैरेसा, उसके बाबत फ्रायड ने जो कहा वही मीरा के बाबत कहता। और थैरेसा कहती है. 'मैं तो तुम्हारी वधू हूं क्राइस्ट' और फ्रायड कहता है, इसमें तो सेक्यूअलिटी है, कामुकता है, यह बात गड़बड़ है। वधू! 'तुमसे मेरा विवाह हुआ तुम मेरे पति हो, मैं तुम्हारी पत्नी!' एक यहूदी की लड़की ईसाई नन हो गयी साध्वी हो गयी। यहूदी बड़ा नाराज था। एक तो ईसाई हो जाना, फिर साध्वी हो जाना! वह बहुत नाराज था। उसने उसका फिर चेहरा नहीं देखा। तीन साल बाद अचानक साध्वियों के आश्रम से फोन आया कि 'तुम्हारी लड़की की मृत्यु हो गयी है। तो आप
SR No.032111
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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