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________________ उसके शिष्यों का कोई बड़ा समूह था, कोई पांच सौ उसके भिक्षु थे, बड़ा आश्रम था। एक छोटा बच्चा, जो उसके लिए पानी इत्यादि लाने की सेवा करता था, वह भी सीख गया था उसकी भाव-मुद्रा। कोई कुछ कहता तो वह बच्चा भी एक अंगुली उठा कर जवाब देता। यह मजाक ही थी। बच्चा पीछे खड़ा था और बोकोजू समझा रहा था। बोकोजू ने अंगुली उठाई उस बच्चे ने भी पीछे मजाक में अंगुली उठाई। बोकोजू लौटा पीछे, बच्चे की अंगुली उठा कर छुरे से उसने काट दी। यह लगेगा कि बड़ा क्रूर कृत्य है। लेकिन एक सदमा लगा। अंगुली का काटा जाना, तीर की तरह चुभ जाना उस पीड़ा का और एक क्षण को बच्चा किंकर्तव्यविमूढ़ हो गया! सोचा भी न था यह। अनसोचा हुआ। लेकिन उसी क्षण घटना घट गयी। वह बड़ी छोटी उम्र में अपने अंतस में प्रवेश कर गया, समाधिस्थ हो गया। तो ऐसे सदगुरुओं की घटनाओं को ऊपर से देखा नहीं जा सकता। अब यह अंगुली काट देना साधु-संत के लिए उचित नहीं मालूम पड़ता। लेकिन कोन तय करे! जो घटा, अगर उसको हम देखें तो बड़ी करुणा थी बोकोजू की कि काट दी अंगुली। शायद यह मौका फिर न आता, शायद यह बच्चा बिना जाने मर जाता। यह बच्चा बड़े ज्ञान का उपलब्ध हुआ। यह अपने समय में खुद एक बड़ा सदगुरु हुआ। और वह सदा अपनी टूटी अंगुली उठा कर कहता था फिर कि मेरे गुरु की कृपा अनुकंपा! एक चोट में विचार बंद हो गये! झटके में! __ 'जब मेरी स्पृहा नष्ट हो गयी, तब मेरे लिए कहां धन, कहां मित्र, कहां विषय-रूपी चोर, कहां शास्त्र, कहा ज्ञान?' सब तब भीतर है, धन भी भीतर है, शास्त्र भी भीतर है, ज्ञान भी भीतर है। तुम जब तक बाहर से कचरा बटोरते रहोगे, सूचनाएं इकट्ठी करते रहोगे, अज्ञानी ही रहोगे। शास्त्र तुम्हें जगा न पाएगा। तुम ढोते रहो शास्त्र का बोझ, इससे तुम चमकोगे न; इससे तुम्हारे भीतर का दीया न जलेगा। शायद इसी के कारण दीया नहीं जल रहा है। ___मैं बहुत लोगों के भीतर देखता हूं उनके दीये की ज्योति किसी की वेद में दबी है किसी की कुरान में दबी है, किसी की बाइबिल में दबी है और मर रही है। और वह सम्हाले हुए है अपने वेदकुरान-बाइबिल को, पकड़े हुए है छाती से कि कहीं छूट न जाए, कहीं ज्ञान न छूट जाए। कोई हिंदू होने के कारण मर रहा है, कोई मसलमान होने के कारण, कोई जैन होने के कारण मर रहा है। ज्ञान न हिंदू है न मुसलमान है न जैन है। जो ज्ञान हिंदू मुसलमान, जैन है-ज्ञान ही नहीं है। ज्ञान तो तुम्हारे स्वभाव का दर्शन है। वह तुम्हारे भीतर छिपा है। कहीं और खोजने की जरूरत नहीं है। उतर कर गहरे में बन गया तट तल ऊपर उदवेलित लहरें, नीचे शांत जल छूट गये शंख-सीप, विदुम दीप हाथ लगे मुक्ता फल जैसे-जैसे भीतर गहरे जाओगे, हाथ लगेंगे मुक्ता फल।
SR No.032111
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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