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________________ विमर्शपूर्वक नहीं किया तुमने जाग कर, सोच कर पूरी स्थिति को समझ कर नहीं किया। मजबूरी में हो गया। बटन दबा दी किसी ने और हो गया। तुम अपने मालिक नहीं हो। तुमसे कुछ भी करवाया जा सकता है। एक आदमी आया, जरा तुम्हारी खुशामद की, तुम पानी-पानी हो गए; फिर तुमसे वह कुछ भी करवा ले। डेल कारनेगी ने लिखा है कि वह एक गांव में इंश्योरेंस का काम करता था और एक धनपति की महिला थी जिसने इंश्योरेंस तो करवाया नहीं था, और यद्यपि प्रत्येक इंश्योरेंस एजेंट की नजर उस पर लगी थी। वह इतनी नाराज थी इंश्योरेंस एजेंटों पर कि जैसे ही किसी ने कहा कि मैं इंश्योरेंस का आदमी हूं कि वह उसे धक्के दे कर बाहर निकलवा देती । भीतर ही न घुसने देती! जब डेल कारनेगी उस गांव में पहुंचा तो उसके साथियों ने कहा कि अगर तुम इस औरत का इंश्योरेंस करके दिखा दो तो हम समझें। उसने बड़ी प्रसिद्ध किताब लिखी है. 'हाऊ टू विन फ्रेंड्स एंड इम्मएंस पीपुल । तो लोगों ने कहा : 'किताब लिखना एक बात है कि लोगों को कैसे जीतो, लोगों को कैसे मित्र बनाओ - इस बुढ़िया को जीतो तो जानें।' तो उसने कहा. 'ठीक, कोशिश करेंगे।' वह दूसरे दिन सुबह पहुंचा। मकान के अंदर नहीं गया ऐसा बगीचे के किनारे घूमता रहा । बुढ़िया अपने फूलों के पास खड़ी थी। उसके गुलाब के फूल सारे देश में प्रसिद्ध थे। वह बाहर खड़ा है और उसने कहा कि आश्चर्य, ऐसे फूल मैंने कभी देखे नहीं। बुढ़िया पास आ गयी। उसने कहा 'तुम्हें फूलों से प्रेम है ! भीतर आओ!' इंश्योरेंस एजेंट को भीतर नहीं आने देती थी, लेकिन फूलों से कोई प्रेम करने वाला..। वह भीतर आया। वह एक - एक फूल की प्रशंसा करने लगा। ऐसे कुछ खास फूल थे भी नहीं। मगर प्रशंसा के उसने पुल बाध दिए। वह बुढ़िया तो बाग-बाग हो गयी। बुढ़िया तो उसे घर में ले गयी, उसे और चीजें भी दिखाईं। ऐसा वह रोज ही आने लगा । एक दिन बुढ़िया ने उससे पूछा कि तुम काफी समझदार बुद्धिमान आदमी हो, इंश्योरेंस के संबंध में तुम्हारा क्या खयाल है? क्योंकि बहुत लोग आते हैं 'इंश्योरेंस करवा लो, इंश्योरेंस करवा लो।' अभी तक उसने बताया नहीं था कि मैं इंश्योरेंस का एजेंट हूं और उसने समझाया कि इंश्योरेंस तो बड़ी कीमत की चीज है, जरूर करवा लेनी चाहिए। तो बुढ़िया ने पूछा 'कोई तुम्हारी नजर में हो जो कर सकता हो, तो तुम ले आओ।' उसने कहा: 'मैं खुद ही हूं.' वह धीरे- धीरे गया! खुशामद! कई बार तुम जानते भी हो कि दूसरा आदमी झूठ बोल रहा है। तुम्हें पता है अपनी शक्ल का, आईने में तुमने भी देखा है। कोई कहता है. 'अहा, कैसा आपका रूप!' जानते हो कि अपना रूप खुद भी देखा है, लेकिन फिर भी भरोसा आने लगता है कि ठीक ही कह रहा है। जो सुनना चाहते थे, वही कह रहा है, 'कि आपकी बुद्धिमानी, कि आपकी प्रतिभा, कि आपका चरित्र, कि आपकी साधुता..!' पता है तुम्हें कितनी साधुता है, लेकिन जब कोई कहने लगता है तो गुदगुदी होनी शुरू होती है। फिर जब कोई आदमी इस तरह की थोड़ी बातें कह लेता है. । डेल कारनेगी ने लिखा है कि अगर किसी आदमी से किसी बात में 'ही' कहलवानी हो तो पहले तो ऐसी बातें कहना जिसमें वह 'ना' कह ही न सके। अब जब कोई तुम्हारे रूप की प्रशंसा करने लगे
SR No.032111
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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