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________________ मालूम होता है! और बोधिधर्म खिलखिला कर हंसा । सम्राट ने पूछा. 'यह क्या आप कर रहे हैं? आपका मन तो स्वस्थ है? कहीं यह लंबी यात्रा भारत से चीन तक की आपको विक्षिप्त तो नहीं कर गयी? क्योंकि मैंने तो ऐसी खबरें सुनी हैं आप महानतम जाग्रत पुरुष हैं- और यह क्या कर रहे हैं!' बोधिधर्म ने कहा : यही जानने को किया कि तुम खेल को खेल समझ सकते हो या नहीं! जूता जूता है, पैर में हो कि सिर पर हो, सब बराबर है। यही जांचने को कि तुम मुझे पहचान सकोगे या नहीं। मुझे देखो, मेरा कृत्य नहीं। कृत्य में मत उलझो, क्योंकि मैं कृत्य के पार गया। तुम मुझे देखो तुम यही देख रहे हो कि आदमी सिर पर जूता रखे आ रहा है। यह सिर तो आज नहीं कल गिरेगा और हजारों लोगों के जूते इस सिर पर पड़ेंगे। फिर त्र और कभी-कभी क्रोध में सम्राट बू- 'बू उसका नाम था- तुमने भी किसी के सिर पर जूता मार देना चाहा है या नहीं? कभी खयाल किया तुमने? आदमी का मनोविज्ञान बड़ा अदभुत है। जब तुम किसी पर श्रद्धा करते हो तो अपना सिर उसके जूतो में रखते हो, उसके पैर में रख देते हो। और जब तुम्हें किसी पर क्रोध आता है तो अपना जूता निकाल कर उसके सिर पर मारते हो । इच्छा तो यही होती थी कि उचक कर अपना पैर उसके सिर पर रख दें, वह जरा कठिन काम है और सर्कस में रहना पड़े, तब कर पाओ-तो प्रतीकवत, प्रतीक-स्वरूप जूता निकाल कर उसके सिर पर रख देते हो। बोधिधर्म ने कहा. इसलिए एक पैर में रखा है, एक सिर पर रखा है - तुम्हें तुम्हारी खबर देने को! और बू तो और भी परेशान हुआ क्योंकि कल साँझ ही एक घटना घटी थी, जब उसने अपने नौकर को उठा कर जूता उसके सिर में मार दिया था। वह तो बड़ा विचलित हो गया। उसे तो पसीना आ गया। उसने कहा 'महाराज, क्या आपको कुछ अंदाज मिल गया, कुछ पता चल गया? आप ऐसा व्यंग्य न उड़ाये ।' बोधिधर्म एक खेल कर रहा है। यह कृत्य सिर्फ लीला - मात्र है, लेकिन बच्चों के लिए उपयोगी हो सकता है। एक दूसरा बौद्ध भिक्षु जापान के गांव-गांव में घूमता रहता था। होतेई उसका नाम था । वह एक झोला अपने कंधे पर टांगे रखता; उसमें खेल-खिलौने, मिठाइयां इत्यादि रखे रहता था। और जो भी उससे पूछता, ' धर्म के संबंध में कुछ कहो होतेई, वह एक खिलौना पकड़ा देता या मिठाई दे देता। पूछने वाला कहता कि तुमने हमें क्या बच्चा समझा है? होतेई कहता. मैं खोज रहा हूं, प्रौढ़ तो कोई दिखता नहीं, सब खेल में उलझे हैं। छोटे बच्चे भी छोटे बच्चे हैं, बड़े बच्चे भी बस बच्चे हैं। बड़े होंगे उम्र से, बच्चे ही हैं। इस होतेई से किसी बड़े समझदार आदमी ने पूछा कि होतेई, धर्म का अर्थ क्या है? तो उसने अपना झोला नीचे गिरा दिया। पूछने वाले ने पूछा. और फिर धर्म का जीवन में आचरण क्या है? उसने झोले को उठा कर कंधे पर रखा और चल दिया। उसने कहा : पहले त्याग दो, सब व्यर्थ है फिर खेल-खेल में सब सिर पर रख लो; क्योंकि जब व्यर्थ ही है तो न तो भोग में अर्थ है न त्याग
SR No.032111
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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