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________________ परमात्मा को तो हम फेहरिस्त पर आखिर में रखते हैं। जब कुछ करने को न होगा, तब परमात्मा को सूझ-बूझ लेंगे। फिर एक दिन अचानक गांव में खबर आई कि बुद्ध ने घोषणा की कि आज वे देह छोड़ रहे हैं, तब वह आदमी घबराया। तब उसने फिक्र न कि पत्नी बीमार है, कि बच्चे का विवाह करना है, कि दूकान पर ग्राहक है-वह भागा। दूकान बंद भी नहीं की और भागा। लोगों ने कहा, पागल हो गए हो, कहां जा रहे हो? उसने कहा, अब बहुत हो गया। वह भाग कर पहुंचा लेकिन देर हो गई थी। बुद्ध ने अपने भिक्षुओं से पूछा था घड़ी भर पहले : कुछ पूछना तो नहीं? अन्यथा मैं अब विलीन होऊं, मेरा समय आ गया है, मेरी नाव आ लगी किनारे, अब मैं जाऊं? भिक्षुओं ने कहा. आपने बिना पूछे इतना कहा, बिना मांगे इतना दिया है-अब पूछने को कुछ भी नहीं। जो आपने दिया है, उसे ही हम कहां समझ पाए? जो आपने कहा है, उसे ही हम अभी कहां गुन पाए? जन्म-जन्म लगेंगे हमें, तब कहीं हम उसका सार निकाल पाएंगे। भिक्षु तो रोने लगे। बुद्ध वृक्ष के पीछे जा कर बैठ गए। उन्होंने शरीर का साक्षी- भाव साधा, शरीर से अलग हो गए। मन का साक्षी-भाव साध रहे थे, मन से अलग होते जाते थे, तभी वह आदमी भागता हुआ पहुंचा। उसने कहा कहां हैं? बुद्ध कहां हैं? अब और नहीं चूक सकता। अब कल नहीं बचा, क्योंकि अब वे जा रहे हैं। भिक्षुओं ने कहा : अब तुम चुप रहो, तुम चूक ही गए। हम तो उनसे विदा भी ले चुके। अब तो वे धीरे - धीरे जीवन की पर्तों को छोड़ कर अनंत की यात्रा पर जा रहे हैं। उनकी नाव तो किनारे से छूटने के करीब है। अब नहीं, अब बहुत देर हो गई। लेकिन कहते हैं, बुद्ध ने जैसे ही यह सुना...| वे मन से छूट ही रहे थे। मन से छूट गए होते, तब तो सुन भी नहीं सकते थे। मन की आखिरी जगह से नाव की रस्सी खोल रहे थे कि सुन लिया, कि वापिस लौट आए। उठ कर आए और कहा. मत रोको, मेरे नाम पर लांछन रह जाएगा कि मैं जीवित था, कोई मेरे द्वार आया था, झोली ले कर आया था और खाली हाथ लौट गया। नहीं, ऐसा मत करो। उसे क्या पूछना है, पूछ लेने दो। उसने तीस साल तक भूल की, इससे क्या मैं भूल करूं? और जब भी आ गया वह, तभी जल्दी है। तीस साल में भी कोन आता है! अनेक लोग हैं जो तीस-तीस जन्मों तक नहीं आते हैं। जब ऐसा भाव जगे तो हिम्मत करना। जग के कीचड़ कादों से लथपथ मटमैली काल कंटकित झंखाड़ों में अटकी-झटकी चित चिरबत्ती
SR No.032111
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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