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________________ बीच में पर्दा डाला गया, कि हो सकता है बीन - वादक डोलता है, उसको देख कर सांप डोलता है। आख है सांप के पास, कान तो है नहीं। तो बीच में पर्दे डाल दिए गए, बीन - वादक को दूर कर दिया; फिर भी सांप डोलता है। तब एक अनूठी बात पता चली और वह यह कि सांप के पास कान तो नहीं है, लेकिन बीन से जो तरंग पैदा होती है, उससे उसके पूरे शरीर पर तरंग पैदा होती है। कान नहीं है। उसकी पूरी काया डोल जाती है। जब कोई बात छूती है, तो सब डोल जाता है। तो जिस बात से तुम डोलने लगो, वही तुम्हारा मार्ग है। जिस बात से रस घुलने लगे तुम्हारे भीतर वही तुम्हारा मार्ग है। फिर तुम सुनना मत और क्या कोई कहता है। तुम अपने हृदय की सुनना और अपने रस के पीछे चल पड़ना। दूसरा प्रश्न : जब आपका प्रवचन पड़ता हूं तो आश्चर्य होता है। लेकिन उसे ही जब सनता हूं तब सिर्फ ध्वनि ही ध्वनि गूंजती रह जाती है। अंत में रह जाती है केवल शुन्यता और भीनी-भीनी मस्ती । क्या यही आपका स्वाद है प्रभु ? निश्चित ही। तुम्हारी बुद्धि को समझाने को मैं कुछ भी नहीं कह रहा हूं। यहां मेरा प्रयास तुम्हारी बुद्धि को राजी करने के लिए नहीं है। या तो कभी बोलता हूं भक्ति पर तब प्रयास होता है कि तुम्हारा हृदय तरंगित हो, या कभी बोलता हूं ज्ञान पर तब प्रयास होता है कि तुम हृदय, बुद्धि दोनों का अतिक्रमण करके साक्षी बनी। लेकिन बुद्धि के लिए तो बोलता ही नहीं। बुद्धि तो खाज जैसी है, जितना खुजलाओ. । खुजलाते वक्त लगता है सुख, पीछे बड़ी पीड़ा आती है। तुम्हारी बुद्धि के लिए नहीं बोल रहा हूं तुम्हारे सिर के लिए नहीं बोल रहा हूं। या तो बोलता हूं हृदय के लिए कभी, या बोलता हूं उसके लिए जो सब के पार है- हृदय, बुद्धि दोनों के। या तो साक्षी के लिए या तुम्हारे भाव के लिए। या तुम्हारे प्रेम के लिए या सत्य का तुम्हारे भीतर जागरण हो उसके लिए । और अधिकतम लाभ उन्हीं को होगा, जो बुद्धि को छोड़ कर सुनेंगे। बुद्धि से सुना कुछ खास सुना नहीं। शब्दों का सुन लेना कुछ सुनना नहीं है। मैं जो बोल रहा हूं उसकी ध्वनि तुम्हें गुंजाने लगे, तुम सांप की तरह डोलने लगो। यह कोई तर्क नहीं है जो मैं यहां दे रहा हूं-स्थ उपस्थिति है। इस उपस्थिति से तुम आंदोलित हो जाओ! शुभ हो रहा है, फिक्र मत करो। जब होता है ऐसा तो बड़ी चिंता होती है, क्योंकि आए थे सुनने
SR No.032111
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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