SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 146
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ध्वनि पास तुम्हारे एक समय गूंजेगी ही। मैं रखता हूं हर पांव सुदृढ़ विश्वास लिए। ऊबड़-खाबड़ तम की ठोकर खाते-खाते इनसे कोई रक्ताभ किरण फूटेगी ही। भक्त तो ऐसा टटोल-टटोल कर चलता है। वह तो कहता है, आस्था है, कभी पहुंच जाऊंगा। जल्दी भी नहीं है भक्त को, बेचैनी भी नहीं है। त्वरा से हो जाए कुछ, ऐसी आकांक्षा भी नहीं है। भक्त तो कहता है, यह खेल चले, जल्दी क्या है? भक्त तो कहता है, प्रभु! यह छिया-छी चले। तुम छिपो, मैं खोजूं! मैं तुम्हारे पास आऊं, तुम फिर-फिर छिप जाओ। खोलूं खोजूं और खोज न पाऊँ। यह रास चले, यह लीला चले। क्योंकि भक्त के लिए यह लीला है, रास है, खेल है। ज्ञानी के लिए यह बड़ा दुर्गम मार्ग है। ज्ञानी के लिए यह खेल नहीं, लीला नहीं, बड़ी गंभीर बात है, उलझन है, जंजाल है, आवागमन है; इससे छुटकारा पाना है। ये अलग- अलग भाषाएं हैं; दोनों सही हैं। और एक के सही होने से दूसरी गलत नहीं होती, यह खयाल रखना। अक्सर मन में ऐसा होता है, अगर एक सही तो दूसरी गलत होगी। जीवन बहुत बड़ा है, विरोधों को भी सम्हाल लेता है। जीवन इतना छोटा और संकीर्ण नहीं जैसा तुम सोचते हो। देखने की बात है। ज्ञानी को तो लगता है जंजाल-कब छुट्रं इससे, कैसे मुक्ति हो? तो ज्ञानी के लिए जो आत्यंतिक चरण है, वह मुक्ति है। भक्त मुक्ति की बात नहीं करता। मोक्ष शब्द ही भक्त की भाषा में नहीं है-बैकुठ। वह कहता है, खेले यहां, वहां भी खेलेंगे। यहां बजाई तुमने बांसुरी की धुन वहां भी बजाना। यहां हम नाचे, वहां भी नाचेंगे। नहीं, भक्त कहता है, मुक्ति मुझे नहीं चाहिए, तुम मुझे अनंत अनंत पाशों में बांध लो। तुम मुझे जितने पाशों में बांध सको बांध लो, मैं तुमसे बंधना चाहता हूं। ये दोनों सही हैं। अब बात इतनी ही है कि तुम्हें जो सही लगे। तुम दूसरे को छोड़ देना भूल जाना, उलझन में मत पड़ना। फिर तुम्हें जो सही लग जाए, जो तुम्हारे स्वभाव के अनुकूल आ जाए, तुम्हारे हृदय पर चोट करे, फिर उसी का जाला तुम बन लेना। मगर मकड़ी की याद रखना। पुराने शास्त्र कहते हैं : परमात्मा ने संसार को भी मकड़ी के जाले की तरह बुना, अपने भीतर से निकाला। और तो कहां से निकालेगा! और तो कुछ था भी नहीं निकालने को। अपने भीतर से ही निकाला होगा। और हर चीज भीतर से ही निकलती है। एक बीज को तुम देखो, इस बीज में छिपा है बड़ा वृक्ष। जरा बो दो इसे जमीन में, आने दो ठीक मौसम, पड़ने दो वर्षा, और एक दिन तुम पाओगे वृक्ष
SR No.032111
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy