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________________ स्वभाव के अनुकूल सुविधा नहीं है। मैंने वर्षों घूम कर देश में देखा। किसी को पाया जैन घर में पैदा हुआ है, वह उसका दुर्भाग्य हो गया। उसके पास हृदय था भक्ति का, लेकिन जैन घर में भक्ति के लिए कोई उपाय नहीं । वहा तो ध्यान की ही गज, एकमात्र गंज है। किसी को मैंने देखा कि भक्ति पंथ में पैदा हो गया है, वल्लभ संप्रदाय में पैदा हो गया है; लेकिन उसका कोई रस भक्ति में नहीं है। ध्यान से सुगंध उठती, लेकिन ध्यान से दुश्मनी है पैदाइश के कारण। कहीं पैदाइश से कोई धर्म होता है? स्वभाव से धर्म होता है। स्वभाव यानी धर्म। पैदाइश तो सांयोगिक घटना है। तुम किस घर में पैदा हुए, इससे थोड़े ही धर्म तय होता है! दुनिया अगर सच में धार्मिक होना चाहती हो, तो हमें बच्चों को धर्म में जबर्दस्ती प्रवेश करवाने की पुरानी प्रवृत्ति छोड़ देनी चाहिए। हमें बच्चों को, सारे द्वार खुले छोड़ देने चाहिए। उन्हें कभी मस्जिद भी जाने दो, कभी मंदिर भी, कभी गुरुद्वारा भी। उन्हें खोजने दो। सिर्फ उन्हें तुम एक रस दे दो कि खोजना है परमात्मा को, बस इतना काफी है। फिर तुम कैसे खोजो कुरान से तुम्हें धुन मिलेगी कि गीता से- तुम्हारी मर्जी । पहुंच जाना परमात्मा के घर । कुरान की आयत दोहराते पहुंचोगे कि गीता के मंत्र पाठ करते, कुछ लेना-देना नहीं । तुम पहुंच जाना अटक मत जाना कहीं । शुभ होगा वह दिन, जिस दिन एक ही घर में कई धर्मों के लोग होंगे - पत्नी मस्जिद जाती, पति गुरुद्वारा जाता, बेटा चर्च में। और जब तक ऐसा न हो जाए, तब तक दुनिया में धर्म नहीं हो सकता, असंभव है। क्योंकि धर्म का पैदाइश से कोई भी संबंध नहीं है। तो तुम अपनी खोज करो। मेरे पास जो लोग हैं, यही मेरी देशना है उन्हें । इसलिए मैं सब पर बोल रहा हूं। तुम कभी-कभी चौंकते हो। मेरे पास लोग आते हैं। वे कहते हैं, आप एक ही धारा पर बोलें, तो हम निश्चित हो कर लग जाएं काम में। कभी आप भक्ति पर बोलते हैं, कभी आप ज्ञान पर बोलते हैं। कभी आप कह हैं, डूब जाओ; कभी कहते हैं, साक्षी हो जाओ; कभी अष्टावक्र, कभी नारद - हम बड़ी बिबूचन में पड़ जाते हैं। तुम बिन में मेरे बोलने के कारण नहीं पड़ रहे हो। तुम बिबूचन में पड़ रहे हो क्योंकि तुम अभी तक यह नहीं पहचान पाए कि तुम्हारा रस क्या है? तुम्हें अपना रस समझ में आ जाए, इसलिए बोल रहा हूं। ये सारे शास्त्र तुम्हारे सामने खोल रहा हूं कि तुम्हें अपना रस पहचान में आ जाए। ऐसा हुआ, इंग्लैंड में एक आदमी दूसरे महायुद्ध में, चोट खाया युद्ध में, गिर पड़ा, स्मृति खो गई। बड़ी मुश्किल हो गई। स्मृति खो गई थी तो कोई अड़चन न थी। उसे नाम तक याद न रहा, तो १गई अड़चन न थी । लेकिन युद्ध के मैदान से लौटते वक्त उसका नंबर का बिल्ला भी कहीं गिर गया। वह कोन है, यही समझ में न आए। किसी मनोवैज्ञानिक ने सलाह दी कि इसे इंग्लैंड में गांव-गांव घुमाया जाए, शायद अपने गांव को देख कर पहचान ले, शायद भूली सुध आ जाए, जहां पैदा हुआ, बचपन बीता, जिन वृक्षों के नीचे खेला, जिस नदी के किनारे नहाया, शायद उस गांव की हवा, उस गांव का ढंग इसकी भूली स्मृति को खींच लाए । तो उसे इंग्लैंड में गांव-गांव घुमाया गया । यह खड़ा हो जाता स्टेशनों पर जा कर, उसकी आंखें
SR No.032111
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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