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________________ तो आखिरी ऊंचाई छू लेते हैं सूत्र, उनके पार जाना जैसे फिर संभव नहीं, ऐसे ही सूत्र हैं। 'नहीं है कुछ भी, ऐसे भाव से पैदा हुआ जो स्वास्थ्य है, वह कौपीन के धारण करने पर भी दुर्लभ है। इसलिए त्याग और ग्रहण दोनों को छोड़ कर मैं सुखपूर्वक स्थित हां' पहुंचने दो इसे तुम्हारे प्राणों के अंतर्तम का अकिंचनभव स्वास्थ्य कौपीनत्वेउपि दुर्लभम् । ऐसा जान कर कि नहीं कुछ भी है इस जगत में पाने योग्य; नहीं कुछ भी है इस जगत में मालिक बनने योग्य, नहीं कुछ भी है इस जगत में सिवाय सपनों के ऐसा जान कर अकिंचन जो हो गया अकिंचन का अर्थ होता है, ना कुछ जो हो गया, ऐसा जान कर जिसने अपनी शून्यता को स्वीकार कर लिया। मैं हूं शून्य और इस जगत में भरने का इस शून्य का कोई उपाय नहीं है, क्योंकि यह जगत है सपना। मैं हूं शून्य, जगत है सपना - सपने से शून्य को भरा नहीं जा सकता। यह शून्य तो तभी भरेगा जब परमात्मा इसमें आविष्ट हो, उतरे, पड़े उसके चरण ! अन्यथा यह मंदिर खाली रहेगा। इस मंदिर में तो प्रभु ही विराजे तो भरेगा। तो तुम इस जगत की कितनी ही चीजों से भर लो स्वयं को, तुम धोखा ही दे रहे हो। अंततः तुम पाओगे, किसी और को तुमने धोखा दिया, ऐसा नहीं, खुद ही धोखा खा गए—-अपनी कुशलता से ही धोखा खा गए। ऐसा मुझे कहने दो: इस जगत में जो बहुत कुशल हैं, अंत में पाते हैं कि अपनी कुशलता से मारे गए। इस जगत में सीधे - सरल लोगों ने तो सत्य को कभी पा भी लिया है, लेकिन कुशल और चालाक लोग कभी नहीं पा सके। तुम्हारा पांडित्य ही तुम्हारा पाप है। और तुम्हारी समझदारी ही तुम्हारी फासी बनेगी | अकिंचनभव....... कहते हैं: मैं - कुछ हूं और इसे भरने का इस जगत में कोई उपाय नहीं है। ऐसा मान कर मैं अपने ना-कुछ होने से राजी हो गया हूं। भी नहीं है जो मुझे भर राजी हो जाऊं......। जैसे 1 यही क्रांति का द्वार है। जिस व्यक्ति ने समझ लिया कि बाहर कुछ सके, मैं खाली हूं – और खाली हूं, और खाली हूं तो अब इस खालीपन से ही तुम राजी हु कि एक महत रूपांतरण होता है। जैसे ही तुम राजी हुए तुम शांत हुए चित्त की दौड़ मिटी, स्पर्धा गई, अकिंचन - भाव को तुम स्वीकार किए कि ठीक है, यही मेरा होना है, यही मेरा स्वभाव है, शून्यता मेरा स्वभाव है- अकिंचनभव स्वास्थ्यं तत्क्षण तुम्हारे जीवन में एक स्वास्थ्य की घटना घटती है। 'स्वास्थ्य' शब्द बड़ा महत्वपूर्ण है। इसका अर्थ होता है: तुम स्वयं में स्थित हो जाते हो । स्व-स्थित हो जाना स्वास्थ्य है। अभी तो तुम दौड़ रहे हो। तुम विचलित हो, स्मृत हो । अस्वास्थ्य का अर्थ है जो अपने केंद्र पर नहीं है, जो स्वयं में नहीं है; जो इधर-उधर भटका है। कोई धन के पीछे दौड़ा है- अस्वस्थ है, रुग्ण है। कोई पद के पीछे दौड़ा है चीज के पीछे दौड़ा है। लेकिन जो दौड़ रहा है किसी और के - अस्वस्थ है; रुग्ण है। कोई किसी और पीछे, वह अस्वस्थ रहेगा। क्योंकि दौड़
SR No.032111
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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