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________________ उससे कहा. फिर हमें बातचीत साफ कर लेनी चाहिए, क्योंकि तुम्हारे विश्वास को मजबूत बनाने का अर्थ तो तुम्हीं को मजबूत बनाना होगा। तुम सोचते हो तुम जीसस पर विश्वास करते हो? तुम्हें जीसस से कोई भी प्रयोजन है? तम्हारा विश्वास मजबूत होना चाहिए। और जब तक तुम्हारा सब भाव न मिट जाये, 'मैं होने का, तब तक जीसस से तुम्हारा कोई संबंध नहीं हो सकता। अगर तुम मुझ पर छोड़ते हो, तो मेरी पूरी चेष्टा यह होगी कि तुम्हारे विश्वासों को बिलकुल मिटा डालूं क्योंकि उन्हीं विश्वासों के सहारे तुम खड़े हो। जब सब सहारे गिर जायेंगे तो तुम भी गिर जाओगे। और जहां तुम गिरोगे वहीं सूली लगी! जहां तुम गिरे, वहीं तुम्हारा संबंध क्राइस्ट से हुआ। उससे मैंने कहा, जब तक तुम क्रिश्चियन हो, तब तक क्राइस्ट से कोई संबंध न हो सकेगा। तो अगर तुम मुझ पर छोड़ते हो, तो मैं तुम्हारे क्राइस्ट. तुम्हारे क्राइस्ट को तो बिलकुल मिटा दूंगा, क्योंकि तुम्हारा क्राइस्ट तो तुम्हीं को भरता है। जब तुम समाप्त हो जाओगे तुम्हारा क्राइस्ट, तुम्हारी क्रिश्चिएनिटी, तुम्हारा चर्च, तुम्हारा शास्त्र सब खो जायेगा, और तुम्हीं खो जाओगे सबके आधार! -तब जिसका प्रादुर्भाव होगा, उसे फिर तुम चाहे क्राइस्ट कहना, चाहे बुद्ध कहना, चाहे जिन कहना, तुम्हें जो मर्जी हो कहना। उससे फिर मुझे कोई प्रयोजन नहीं, वह नाम की ही बात है। न तो जीसस का नाम क्राइस्ट था, न बुद्ध का नाम बुद्ध था, न महावीर का नाम जिन था, वे तो चैतन्य की अवस्था के नाम हैं-आखिरी अवस्था के नाम हैं। जिन का अर्थ : जिसने जीत लिया। बुद्ध का अर्थ. जो जाग गया। क्राइस्ट का अर्थ भी है. जो सूली से गुजर गया और फिर भी न मरा। जो मृत्यु से गुजर गया और महाजीवन को उपलब्ध हो गया-क्राइस्ट का अर्थ है। सूली गुजर गयी और फिर भी कुछ न मिटा। जो शाश्वत था वह बना रहा, जो व्यर्थ था वही छूट गया। सूली पर जो मरा, वे जीसस थे-सूली से जो बच रहा, वे क्राइस्ट! वही पुनरुज्जीवन की कथा का अर्थ है। हंता का अर्थ है. जिसने अपने को पोंछ डाला, मिटा डाला; जिसने अपने हाथ से अपने अहंकार को घोंट दिया, गला घोंट दिया। फिर बचते हैं हम-असीम की भांति, अनंत की भांति, शाश्वत- सनातन की भाति। ठीक किया जनक ने उत्तर देने में जो पहला शब्द उपयोग किया, उसमें सब कह दिया। उसमें सब कह दिया कि आप मुझे धोखा न दे पायेंगे। आप मुझे नाराज न कर पायेंगे। कितनी ही परीक्षा लो मेरी, क्षण भर को भी मैं नहीं भूलूंगा कि तुम पहुंच गये हो। तुम्हारी कठोरता के कारण मैं ऐसा सोच भी नहीं सकता हूं कि तुम्हारे मन में ईर्ष्या होगी। तुम तो हो ही नहीं तो ईर्ष्या कैसी? तुम तो हो ही नहीं, तो अहंकार कैसा? तुम तो हो ही नहीं, तो कठोरता कैसी? इसलिए पहला 'हंत' शब्द उपयोग किया। उस 'हंत' में सब कह दिया। बात तो वहीं खत्म हो गयी, शेष सूत्र तो फिर व्याख्या हैं। शेष सूत्रों में तो इसी बात को फैला कर कहा। हंतात्मशस्य धीरस्य खेलतो भोगलीलया। न हि संसारवाहीकैमूरै सह समानता।। 'हे हंत, भोगलीला के साथ खेलते हुए आत्मज्ञानी धीरपुरुष की बराबरी संसार को सिर पर
SR No.032110
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages407
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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