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________________ और यह कहां की बात कह दी? इससे हम और भी उदास हो गए। लोग दुख से संबंध बना लेते हैं। फिर संबंध ऐसे हो जाते हैं प्राचीन और आदत के, कि छूटना भी चाहो तो छूटते नहीं। एक हाथ से छूटते हो, दूसरे हाथ से बनाए चले जाते हो। इसका थोड़ा खयाल रखना। कल मैं एक गीत पढ़ता था : एक उदास तनहाई जिंदगी को रास आई! कुछ लोग हैं, जिन्हें उदासी और अकेलापन रास आ जाता है। क्योंकि किसी के साथ रहो तो झंझट तो आती है। तुम जानते हो : साथ यानी झंझट। इसलिए तो आदमी साथ से भागता है। किसी के भी साथ रहो तो थोड़ी-बहु त झंझट होगी क्योंकि जहां दो बर्तन हुए, थोड़ी आवाज, कलह होना शुरू होती है। वहीं चुनौती भी है। लेकिन इससे आदमी डर सकता है, भाग सकता है कि इससे तो अकेले बेहतर। अकेले राम-कोई झंझट नहीं! मगर अकेले राम तो हो गए, लेकिन चुनौती नहीं रही; सीता नहीं रही, रावण नहीं रहे! अकेले राम तो हो गए, लेकिन रामलीला खत्म! तो तुम तो राम से भी ज्यादा समझदार हो गए। राम का सारा व्यक्तित्व निखरा, क्योंकि अकेले राम नहीं थे; बड़ी चारों तरफ जीवन के संघर्ष की स्थिति थी। उसमें से व्यक्तित्व निखरता है। तो अकेले में एक तरह की मुर्दा शांति है। एक उदास तनहाई जिंदगी को रास आई दिल में तेरी चाहंत भी ले के रंगे-यास आई। आशिकी शक-ए-बाइ क्यों न मेरे पास आई? कितने जाम खाली हैं कितने जाम छलके हैं इश्क की फजाओं में वहम के महल के हैं हुस्न की जियाओं में सोच के धुंधलके हैं मेरी आरजुओं के रंग कितने हलके हैं आह, क्यों मेरी फितरत
SR No.032110
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages407
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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