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________________ प्रवेश पा सकेंगे। यहां वे आश्चर्य के संबंध में ही इंगित कर रहे हैं। तीसरा प्रश्न : गुरु शिष्यों के साथ क्या कभी छिया -छी का खेल भी खेलता है? कृपा करके कहें। प्रिया-छी ही तो पूरा का पूरा संबंध है गुरु और शिष्य का। कभी कभी खेलता है, ऐसा नहीं बस वही तो संबंध है। और न केवल गुरु और शिष्य के बीच वैसा संबंध है, परमात्मा और सृष्टि के साथ भी वैसा ही संबंध है। गुरु और शिष्य तो उसी विराट खेल को छोटे पैमाने पर खेलते हैं जिसे बड़े पैमाने पर परमात्मा सृष्टि के साथ खेल रहा है। यहां परमात्मा सब जगह छिपा है, पुकार रहा है जगह-जगह से : ' आओ, मुझे छुओ, खोजो!' जिस दिन तुम उसकी पुकार सुन लोगे और तुम उसे खोजने लगोगे उस दिन तुम पाओगे कि खोजने में इतना आनंद है कि तम शायद कहने लगो कि जल्दी मत करना प्रगट हो जाने की। तुम कभी छोटे थे, जब तुमने खेला बच्चों का खेल छिया-छी का। एक ही कमरे में बच्चे खड़े हो जाते हैं छिप कर, कोई बिस्तर के नीचे दब गया है, कोई कुर्सी के पीछे छिप गया है और सबको पता है कि कौन कहां है, क्योंकि सभी धीरे - धीरे आंख खोल कर देख रहे हैं कि कौन कहां है, फिर भी खेल चलता है। जिसने देख लिया है, वह भी इधर-उधर दौड़ता है; वहां नहीं आता जहां कि तुम छिपे हो, क्योंकि खेल तो खेलना है; नहीं तो अगर सीधे चले आए, जहां तुम छिपे हो तो खेल खत्म हो गया। तुम्हें भी पता है कि वह कहां से आ रहा है। तुम भी देख रहे हो, वह भी देख रहा है। फिर भी खेल चल रहा है। आत्यंतिक अर्थों में यही अर्थ है लीला का। परमात्मा ऐसा नहीं छिपा है कि मिले नहीं; ऐसा छिपा है कि तुम हाथ बढ़ाओ और मिल जाए। लेकिन जिस दिन तुम समझोगे कि इतने पास छिपा है, तुम कहोगे जरा खेल चलने दो। चुभते ही तेरा अरुण बाण बहते कण-कण से फूट-फूट मधु के निर्झर से सजल गान मेरे छोटे जीवन में देना न तृप्ति का कणभर रहने दो प्यासी आंखें भरती आंसू के सागर
SR No.032110
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages407
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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