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________________ था कि परमात्मा है-अब परमात्मा भीतर आ गया है, अब प्रत्यक्ष है! रामकृष्ण से विवेकानंद ने पूछा कि मुझे परमात्मा को दिखाएंगे? मुझे परमात्मा को सिद्ध करके बताएंगे? मैं परमात्मा की खोज में हूं। मैं तर्क करने को तैयार हूं। रामकृष्ण सुनते रहे। और रामकृष्ण ने कहा : तू अभी देखने को राजी है कि थोड़ी देर ठहरेगा? अभी चाहिए? थोड़े विवेकानंद चौंके। क्योंकि औरों से भी पूछा था वे पूछते ही फिरते थे। बंगाल में जो भी मनीषी थे, उनके पास जाते थे कि ईश्वर है? तो कोई सिद्ध करता था, प्रमाण देता था-वेद से, उपनिषद से। और यहां एक आदमी है अपढ़, वह कह रहा है : अभी या थोड़ी देर रुकेगा? जैसे कि घर में रखा हो, जैसे कि खीसे में पड़ा हो परमात्मा! अभी! यह सोचा ही नहीं था विवेकानंद ने कि कोई ऐसा भी पूछने वाला कभी मिलेगा कि अभी। और इसके पहले कि वह कुछ कहें, रामकृष्ण खड़े हो गए। इसके पहले कि विवेकानंद उत्तर देते, उन्होंने अपना पैर विवेकानंद की छाती से लगा दिया, और विवेकानंद के मुंह से जोर की चीख निकली : आह! और वे गिर पड़े और कोई घंटे भर बेहोश रहे। जब वह होश में आए तो आंखें आसुरों से भरी थीं, 'आह' 'अहा' हो गई थी। जब उन्होंने रामकृष्ण की तरफ देखा तो 'अहो' में रूपांतरण हुआ' अहा' का। वे गदगद हो गए। उन्होंने पैर पकड़ लिए रामकृष्ण के और कहा : अब मुझे कभी छोड़ना मत! मैं नासमझ हूं! मैं कभी छोडूं भी, भाग भी, लेकिन मुझे तुम कभी मत छोड़ना! यह हुआ क्या? विवेकानंद पूछने लगे : मुझे किस लोक में ले गए? सब सीमाएं खो गईं, मैं खो गया, अपूर्व शांति और आनंद की झलक मिली! तो परमात्मा है! विचार ठिठक जाए-आह। भाव ठिठक जाए-अहा। तुम्हारी समग्र आत्मा ठिठक जाए-अहो। फ्रैंकल ने महत्वपूर्ण काम किया है कि मनोविज्ञान में उसने अहा अनुभव की बात शुरू की। लेकिन फ्रैंकल कोई रहस्यवादी संत नहीं। उसे संबोधि का या ध्यान का कोई पता नहीं। इसलिए वह 'अहा' तक ही जा पाया, ' अहो' की बात नहीं कर पाया है। और उसकी 'अहा' भी बहुत कुछ 'आह' से मिलती-जुलती है, क्योंकि उसके स्वयं के कोई अनुभव नहीं हैं। यह तर्क -सरणी से, विचार की प्रक्रिया से उसने सोचा है कि ऐसा भी अनुभव होता है। इकहार्ट हैं, तरतूलियन हैं, कबीर हैं, मीरा हैं इनके संबंध में सोचा है। सोच-सोच कर उसने यह सिद्धात निर्धारित किया। लेकिन फिर भी सिद्धात मूल्यवान है, कम से कम किसी ने तर्क से भरे हए खोपड़ियों में कुछ तो डाला कि इसके पार भी कुछ हो सकता है! लेकिन फ्रैंकल की बात प्राथमिक है। उसे खींच कर ' अहो' तक ले जाने की जरूरत है, तभी उसमें दिव्य आयाम प्रविष्ट होता है। दूसरा प्रश्न :
SR No.032110
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages407
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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