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________________ अध्यात्म अनुभव नहीं है। और जब तक अनुभव होता रहे, तब तक अध्यात्म नहीं है। अनुभव का तो अर्थ ही है, तुम अभी भी अनुभोक्ता बने हो, अभी भी भोगी हो! बाहर का नहीं भोग रहे, भीतर का भोग रहे हो, लेकिन भोग जारी है। किसी की कुंडलिनी उठ रही, किसी को पीठ में सुरसुरी मालूम होने लगी। और वह भी सुन लिया है, पढ़ लिया है शास्त्रों में कि ऐसा होगा । तो बैठे हैं, बैठे-बैठे बस खोज रहे हैं कि हो सुरसुरी । अब तुम खोजते रहोगे तो हो जाएगी। तुम कल्पित कर लोगे तुम मान लोगे-हों जाएगी। और जब हो जाएगी, तो तुम बड़े प्रफुल्लित होने लगोगे। तुम प्रफुल्लित होने लगे कि गए चूक गए, फिर ध्यान चूका ! कुछ भी हो, तुम सिर्फ देखना ! तुम द्रष्टा से जरा भी डिगना मत। तुम सिर्फ साक्षी बने रहना। तुम कहना ठीक, गलत, जो भी हो, हम देखते रहेंगे। हम अपनी तरफ से कोई निर्णय न देंगे, कोई चुनाव न करेंगे। हम अच्छे-बुरे का विभाजन न करेंगे। शुरू-शुरू में बड़ा कठिन होगा, क्योंकि आदत जन्मों-जन्मों की है निर्णय देने की। जीसस का बड़ा प्रसिद्ध वचन है. जज ई नॉट; निर्णय मत करो; न्यायाधीश मत बनो! न कहो अच्छा, न कहो बुरा-बस देखते रहो। और तुम चकित हो जाओगे, अगर तुम देखते रहे, तो धीरेधीरे भीड़ छंटने लगेगी। कम विचार आएंगे, कम अनुभव गुजरेंगे। कभी-कभी ऐसा होगा, रास्ता मन का खाली पड़ा रह जाएगा; एक विचार गुजर गया, दूसरा आया नहीं; बीच में एक खाली जगह अंतराल-उसी अंतराल में, जिसको अष्टावक्र कहते हैं. भवासंसक्तिमात्रेण मुहुः मुहु प्राप्ति तुष्टि! वही पुन: पुन: तुष्टि और प्राप्ति होने लगेगी। मिलेगा प्रभु और परम तुष्टि मिलेगी वह तुष्टि अनुभव की नहीं है कि कोई बड़ा अनुभव हुआ है इसलिए अहंकार को मजा आया। नहीं, वह तुष्टि तो शून्य की है। वह तुष्टि तो समाधि की है, अनुभव की नहीं है; वह तुष्टि तो अनुभवातीत है। वह तुष्टि तो तुरीय अवस्था की है। वह तुष्टि तो परम उपशम, विश्रांति की है। 'अब तो उपशम कर ! ' तत अद्यापि उपरम्यताम् ! यही मैं तुमसे भी कहता. अब तो उपशम करो! अब तो विश्राम करो! अब तो बैठो और देखो। अब तो साक्षी बनो! कर्ता बने बहुत, भोक्ता बने बहुत अच्छे भी किए कर्म, बुरे भी किए हो चुका बहुत अब जरा साक्षी बनो! और जो तुम्हें न कर्ता बन कर मिला, न भोक्ता बन कर मिला वही बरस उठेगा प्रसाद की भांति साक्षी में। साक्षी में मिलता है परमात्मा। साक्षी में मिलता है सत्य। क्योंकि साक्षी सत्य है! हरि ओं तत्सत्!
SR No.032110
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages407
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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