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________________ हो सकें। लेकिन कब्जा करने वालों की दौड़ इतनी है, मालकियत का नशा इतना है कि यह असंभव है, यह हो नहीं सकता। दुनिया आज इतनी संपन्न हो सकती है कि कोई आदमी दुखी न हो; किसी को रोटी, रोजी, कपड़े की कोई तकलीफ न हो; दवा, छप्पर का कोई अभाव न हो लेकिन यह हो नहीं सकता। क्योंकि कुछ लोग बिलकुल दीवाने हैं और पागल हैं। उनका एक ही रस है जीवन में ढेर लगाना धन का। यह आब्सेशन है, यह एक विक्षिप्त चित्त की दशा है। कितनी हत्याएं, कितने युद्ध-वें सभी अर्थ के कारण हैं! कितनी राजनीति-वह सब अर्थ के कारण है। टालस्टॉय ने लिखा है कि दुनिया में शांति न होगी, जब तक सिक्के चलते रहेंगे। शायद, दुनिया में ऐसा तो कभी नहीं होगा कि सिक्के न चलें। क्योंकि वह भी अड़चन का कारण होगा, बहुत अड़चन हो जाएगी खडी। आज तो हम सोच ही नहीं सकते कि आदमी बिना सिक्के के रह सकता है। इसलिए टालस्टॉय जैसे अराजकवादियों की बात कभी सुनी जाएगी, यह तो ठीक नहीं है। और मैं मानता भी नहीं कि सुनी जानी चाहिए। लेकिन सिक्कों के पागलपन से आदमी का छुटकारा हो सकता है। खयाल करें, जिस आदमी को धन के पीछे तुम दौड़ते पाओगे, उस आदमी को अगर गौर से देखो तो एक बात तुम्हें पक्की मिलेगी, उस आदमी के जीवन में प्रेम न मिलेगा। कृपण प्रेमी नहीं होता-हो ही नहीं सकता! और प्रेमी कभी कृपण नहीं होता। तो ऐसा लगता है, जितना जीवन में प्रेम होता है, धन का पागलपन उतना ही कम होता है। और जितना जीवन में प्रेम कम होता है, धन का पागलपन उतना ही ज्यादा होता है। धन प्रेम की परिपूर्ति है। हृदय प्रेम से खाली रह गया है तो किसी चीज से भरना होगा। वह जो भीतर की रिक्तता है, घबडाती है, डर पैदा होता है कि मैं भीतर खाली-खाली, भर लूं किसी चीज से! मनस्विद कहते हैं कि बच्चा जब पहली दफे पैदा होता है, तो उसके जीवन में जो पहली महत्वपूर्ण घटना घटती है, वह है मां का स्तन। और मां के स्तन से दो चीजें साथ-साथ बहती हैं उस बच्चे में प्रेम और दूध। अगर मां बच्चे को प्रेम करती है तो बच्चा कभी बहुत फिक्र नहीं करता कि ज्यादा दूध पी ले। सच तो यह है कि मां बच्चे को प्रेम करती है तो बच्चे को बहुत फुसलाना पड़ता है, समझाना पड़ता है, तब वह दूध पीता है। वह फिक्र ही नहीं करता दूध वगैरह पीने की। वह इतना भरा रहता है प्रेम से कि दूध से भरने की इच्छा पैदा नहीं होती। अगर बच्चे को शक हो जाए कि मां प्रेम नहीं करती, या सौतेली मां है, या नर्स है, या मां की उपेक्षा है; चाहती नहीं थी, बच्चा जबर्दस्ती पैदा हो गया है, बर्थ-कंट्रोल की टिकिया शायद काम नहीं कर सकी, इसलिए पैदा हो गया है: एक तिरस्कार है-तो बच्चा जल्दी ही समझ जाता है, फिर वह बहुत दूध पीने लगता है। क्योंकि घड़ी भर बाद दूध मिलेगा या नहीं, इसका भरोसा नहीं। कल की चिंता पकड़ लेती है। तो वह मां के स्तन से लगा ही रहता है। और जितना वह ज्यादा पीता है, उतना मां हटाती है उसको कि हो गया बहुत। जितना मां कहती है, हो गया बहुत हटो-उतना ही उसको घबड़ाहट पैदा होती है भविष्य की. इकट्ठा कर लूं दूध को इकट्ठा कर लूं? जितना हो सके इकट्ठा कर लूं! तुमने देखा, गरीब बच्चों के पेट बड़े मिलेंगे, अमीर घर के बच्चों के पेट बड़े नहीं मिलेंगे। गरीब
SR No.032110
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages407
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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