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________________ और मनोवैज्ञानिकों की बात भी समझ लेने जैसी है। क्योंकि काम में ही हुआ है हमारा जन्म। जो पहली स्फुरणा तुम्हारे जीवन की थी, वह तुम्हारे मां और पिता की कामवासना ही थी। उसी तरंग से तुम आए हो, उसी तरंग से निर्मित हुए हो। तुम्हारा रो रोआ काम से भरा है। तुम्हारा पहला अणु दो काम- अणुओं का जोड़ था। उससे तुम निर्मित हुए। फिर उन्हीं काम अणुओं का फैलाव होता चला गया है। अब तुम्हारे पास करोड़ों सेल हैं शरीर में, लेकिन प्रत्येक सेल काम–कोष्ठ है। ___और तुम ऐसा मत सोचना कि स्त्री तुम्हारे बाहर ही है। क्योंकि जब तुम्हारा जन्म हुआ तो आधा अंग तो मां से मिला, आधा पुरुष से मिला, पिता से मिला। तो तुम्हारे भीतर स्त्री-पुरुष दोनों मौजूद हैं। मात्रा का भेद है, पर दोनों मौजूद हैं। हिंदुओं की धारणा है, अर्धनारीश्वर की। शंकर की तुमने प्रतिमाएं देखी होंगी, जिनमें आधे वे पुरुष हैं, आधे स्त्री। वह धारणा बड़ी बहुमूल्य है। तुम भी अर्धनारीश्वर हो प्रत्येक व्यक्ति अर्धनारीश्वर है; अन्यथा होने का उपाय ही नहीं है। क्योंकि आधी तुम्हारी मां है, आधे तुम्हारे पिता हैं, दोनों के मिलन से तुम निर्मित हुए हो। पुरुष में पिता की मात्रा ज्यादा है, स्त्री में मां की मात्रा ज्यादा है; पर यह मात्रा का भेद है। इसीलिए तो कभी घटना घटती है कि किसी व्यक्ति का काम बदल जाता है, लिंग बदल जाता है। अभी दक्षिण भारत में एक युवती युवक हो गई। कोई बीस-बाईस साल तक युवती थी, अचानक युवक हो गई। पश्चिम में बहुत घटनाएं घटी हैं। और अब तो शरीरशास्त्री कहते हैं कि यह हमारे हाथ की बात हो जाएगी। लोग अगर अपना लिंग परिवर्तन करना चाहें तो कर सकेंगे। कोई व्यक्ति ऊब गया पुरुष होने से तो स्त्री हो सकता है। कोई स्त्री ऊब गई स्त्री होने से तो पुरुष हो सकती है। यह तो सिर्फ थोड़े-से हारमोन बदल देने की बात है, मात्रा बदल देने की बात है। तुम्हारे भीतर, ऐसा समझो कि अगर तुम पुरुष हो, तो साठ प्रतिशत पुरुष के जीवाणु हैं चालीस प्रतिशत स्त्री के जीवाणु हैं। बस, इस अनुपात को बदल दिया जाए, तो तुम स्त्री हो जाओगे। काम से हुआ है जन्म, दो विपरीत कामों के मिलन पर तुम्हारा जीवन खड़ा है। इसलिए यह करीब-करीब असंभव है-मनोवैज्ञानिक के हिसाब से तो बिलकुल असंभव है कि व्यक्ति कामवासना के पार हो जाए! धर्मशास्त्र भी यही कहते हैं। आत्मपुराण में बड़ा अदभुत वचन है कामेन विजितो ब्रह्मा, कामेन विजितो हरः। कामेन विजितो विष्णः शक्र: कामेन निर्जित।। काम ने जीता ब्रह्मा को, काम ने हराया शंकर को, काम ने हराया विष्णु को काम से कौन कब जीता! काम से सब हारे हैं। काम का बल तो प्रबल है। और जिसका जितना ज्यादा बल प्रबल है, उसके पार होने में उतना ही संघर्षण होगा। इसलिए कहते हैं. वैरी-रूप काम। इस जगत में अगर टक्कर ही लेनी हो किसी से, अगर हिम्मत ही हो टक्कर लेने की, अगर संघर्ष करने का और युद्ध करने का, योद्धा बनने का रस हो-तो छोटे-मोटे दुश्मन मत चुनना। खयाल रखना, जितना बड़ा दुश्मन चुनोगे उतनी ही बड़ी तुम्हारी
SR No.032110
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages407
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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