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________________ ठीक भी मालूम पड़ता है, क्योंकि जिसे 'नहीं' कहना ही न आया, उसकी 'ही' में कितना बल होगा? उसकी 'ही' तो नपुंसक की 'ही' होगी। उसकी नपुंसकता ही उसका विश्वास बनेगी। उसकी कमजोरी, उसकी दीनता ही उसका विश्वास बनेगी। और आस्था तो व्यक्ति को बना देती है सम्राट! आस्था तो व्यक्ति को बना देती है विराट! आस्था तो देती है विभुता, प्रभुता! आस्था से तो साम्राज्य फैलता ही चला जाता है-ऐसा साम्राज्य जिसमें सूर्य का कभी कोई अस्त नहीं होता; क्योंकि वहां अंधकार नहीं है, प्रकाश ही प्रकाश है। नास्तिकता को मैं कहता हूं आस्तिकता की अनिवार्य सीडी। इंकार करना सीखना ही होता है तभी हमारे 'ही' कहने में कुछ सार्थकता होती है। जो आदमी हर बात में 'ही' कह देता हो उसकी 'हा' का कितना मूल्य है? जो आदमी कभी 'नहीं' भी कहता हो, उसी की 'ही' में मूल्य हो सकता है। तो दुनिया में तुम्हें दो तरह के आस्तिक मिलेंगे-स्व, जो भय के कारण आस्तिक हैं। उनका नास्तिक मौजूद ही रहेगा भीतर। गहरे में तो नास्तिकता रहेगी, ऊपर-ऊपर पतली-सी पर्त रहेगी, झीनी-झीनी चांदर रहेगी आस्तिकता की-जरा खरोंच दो, फट जाएगी और नास्तिक बाहर आ जाएगा। सब ठीक चलता रहे तो आस्तिकता बनी रहेगी, जरा अस्तव्यस्त हो जाए तो सब खो जाएगा। तुम्हारा लड़का जवान हो और मर जाए और ईश्वर पर संदेह आ जाएगा। तुम्हारी दूकान ठीक चलती थी और दिवाला निकल जाए और ईश्वर पर संदेह आ जाएगा। तुमने ईमानदारी से काम किया था और तुम्हें फल न मिले और कोई बेईमान ले जाए-बस, संदेह आ जाएगा। संदेह जैसे तैयार ही बैठा है! जैसे संदेह बिलकुल हाथ के पास में बैठा है, मौका मिले कि आ जाए! जिनको तुम आस्तिक कहते हो-मदिरों में, मस्जिदों में झुके हुए लोग प्रार्थना-नमाज में- उनके भीतर भी गहरा संदेह है; शक उठता है बार-बार कि हम जो कर रहे हैं, वह ठीक है? लेकिन किए जाते हैं भय के कारण-पता नहीं परमात्मा हो ही, पता नहीं स्वर्ग और नर्क हों! इसलिए होशियार आदमी को दोनों का इंतजाम कर लेना चाहिए। एक मुसलमान मौलवी मरने के करीब था। गांव में कोई और पढ़ा-लिखा आदमी नहीं था, तो मुल्ला नसरुद्दीन को ही बुला लिया कि वह मरते वक्त मरते आदमी को कुरान पढ़ कर सुना दे। मुल्ला ने कहा, कुरान इत्यादि छोड़ो। अब इस आखिरी घड़ी में मैं तो तुमसे सिर्फ एक बात कहता हूं इस प्रार्थना को मेरे साथ दोहराओ। और मुल्ला ने कहा. कहो मेरे साथ कि हे प्रभु और हे शैतान, तुम दोनों को धन्यवाद! मेरा खयाल रखना। उस मौलवी ने आंखें खोलीं। मर तो रहा था, लेकिन अभी एकदम होश नहीं खो गया था। उसने कहा, तुम होश में तो हो? तुम क्या कह रहे हो-हे प्रभु, हे शैतान पू मुल्ला ने कहा, अब इस आखिरी वक्त में खतरा मोल लेना ठीक नहीं। पता नहीं कौन असली में मालिक हो! तुम दोनों को ही याद कर लो। और फिर पता नहीं तुम कहां जाओ-नर्क जाओ कि
SR No.032110
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages407
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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