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________________ अमराई के लहराने पर भी, सुलगा करते हैं भीतर से । रेतीले कण की तृप्ति से, बुझती अपनी प्यास नहीं है। एक फूल का खिल जाना ही, उपवन का मधुमास नहीं है। इधर गरजता काला बादल, आग उगलता सागर गहरा । कुटि पुरानी सन्यासिन पर, अवसादों का निशि - दिन पहरा । इक पहरे का सो जाना ही, मुक्ति का आभास नहीं है। एक फूल का खिल जाना ही, उपवन का मधुमास नहीं है। खतरा इसका है कि एक फूल के खिल जाने को कोई समझ ले वसंत का आगमन हो गया! जब तक कि पूरे प्राण ही न खिल जाएं, जब तक कि पूरी चेतना ही कमलों से न ढक जाए, जब तक कि सारा अंतस्तल प्रकाश से मंडित न हो जाए.. । एक किरण के उतर लेने को सूर्य का आगमन मत मान लेना, और एक फूल के खिल जाने मधुमास मत मान लेना । इसलिए गुरु के द्वारा परीक्षा जरूरी है। हम इतने अंधेरे में रहे हैं, इतने जन्मों, जीवनों, कि जरा-सी भी तृप्ति की झलक - और हमें लगता है आ गया मोक्ष का द्वार! जरा-सी सुगंध - लगता है पहुंच गए उस महा उपवन में। आंख में प्रकाश का सपना भी डोल जाए तो लगता है - हो गया सूर्योदय। हमारा लगना भी ठीक है, क्योंकि हमने कभी दुख के सिवाय कुछ जाना नहीं । सुख की जरा-सी पुलक, सिहरन, जरा-सा रोमांच हमें आह्लादित कर जाता है। हम नर्क में ही जीए हैं; स्वर्ग का स्वप्न भी हमें तृप्ति देता मालूम पड़ता है। लेकिन गुरु की जरूरत ही यही है कि वह हमें जगाए जाए वह कहे, अभी बहुत फूल खिलने को हैं, वह हमें रुकने न दे, वह हमें बढ़ाए चले वह कहे चले और आगे, और आगे ! वह तब तक हमें न ठहरने दे, जब तक कि समस्त जीवन सुगंध से न भर जाए; जब तक कि प्राणों का कोना-को ही प्रकाश से आच्छादित न हो जाए; जब तक कि हम स्वयं प्रकाश-रूप न हो जाएं; हमारे भीतर सिवाय प्रकाश के और कुछ भी न बचे। तभी जानना कि हुआ वसंत का आगमन ।
SR No.032110
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages407
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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