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________________ रोनी सूरत, वही साइकिल पर सवार चला आ रहा है! मगर उसे क्या लेना-देना है? संदेशवाहक, संदेशवाहक है। देखा हैरिगेल ने कि गुरु ठीक कहता था, मैं चूकता रहा हूं। वह उठा और चकित हुआ थोड़ा, क्योंकि उसे लगा. मैं नहीं उठा हूं कोई चीज उठी वह उठ कर गुरु के पास गया, उसने गुरु के हाथ से तीर-कमान ले लिया, चढ़ाया, निशाना मारा और गुरु प्रफुल्लित हो गया, उसने गले से लगा लिया। उसने कहा, हो गया! आज 'उसने चलाया। आज तू उदासीन था। तीन वर्ष में जो न हो पाया, वह आज आखिरी घड़ी में हो गया । उसकी खुशी में उसने गुरु को निमंत्रण दिया कि आज मेरे साथ भोजन करें। गुरु आया, एक सात-मंजिल मकान में भोजन करने बैठे, अचानक भूकंप आ गया। जापान में आमतौर से भूकंप आ जाते हैं। सब भागे, पूरा भवन कंप गया। हैरिगेल खुद भी भागा। भागने में उसे यह भी याद न रही कि गुरु कहां है। सीडी पर भीड़ हो गई, क्योंकि कोई पचीस-तीस आदमियों को उसने बुलाया था। तो उसने पीछे लौट कर देखा, गुरु तो शांत आंख बंद किए बैठा है, जहां बैठा था, वहीं बैठा है। हैरिगेल को यह इतना मनमोहक लगा - यह घटना, गुरु का यह निश्चित रहना, यह भूकंप का होना, यह मौत द्वार पर खड़ी, यह मकान अभी गिर सकता है, सात-मंजिल मकान है, कंपा जा रहा है जड़ों से, और गुरु ऐसा बैठा है निश्चित, जैसे कुछ भी नहीं हो रहा है! वह भूल ही गया भागना। ऐसा कुछ जादू गुरु की मौजूदगी में उसे लगा ! कुछ ऐसी गहराई, जो उसने कभी नहीं जानी! वह आ कर गुरु के पास बैठ गया; कंप रहा है, लेकिन उसने कहा कि मेहमान घर में बैठा हो और मेजबान भाग जाए, यह तो अशोभन है - तो मैं भी बैठूंगा; फिर जो इनका होगा, मेरा भी होगा। भूकंप आया और गया, क्षण भर टिका। गुरु ने आंख खोली, और जहां से बात टूट गई थी भूकंप के आने और लोगों के भागने के कारण, उसे फिर वहीं से शुरू कर दिया। हैरिगेल ने कहा. छोड़िए भी, अब मुझे कुछ याद नहीं कि कौन-सी हम बात कर रहे थे। वह बात आयी–गयी हो गई, इस संबंध में कुछ अब मुझे जानना नहीं । मुझे कुछ और जानने की उत्सुकता है। इस भूकंप का क्या हुआ? हम सब भागे, आप नहीं भागे? गुरु ने कहा : तुमने देखा नहीं, भागा मैं भी । तुम बाहर की तरफ भागे, मैं भीतर की तरफ भागा। तुम्हारा भागना नासमझी से भरा है, क्योंकि तुम जहां जा रहे हो वहां भी भूकंप है। पागलो, जा कहां रहे हो? इस मंजिल पर भूकंप है तो छठवीं पर नहीं है? तो पांचवीं पर नहीं है? तो चौथी पर नहीं है? क्या पहली मंजिल पर नहीं है? तुम अगर किसी तरह मकान के बाहर भी निकल गए, तो सड़क पर भी भूकंप है। तुम भूकंप में ही भागे जा रहे हो। तुम्हारे भागने में कुछ अर्थ नहीं है। मैं ऐसी जगह सरक गया, जहां कोई भूकंप कभी नहीं जाते। मैं अपने भीतर सरक गया। इस भीतर सरक जाने का नाम है 'उदासीन - अपने भीतर बैठ गए ! भूकंप आएगा तो शरीर तक जा सकता है, ज्यादा से ज्यादा मन तक जा सकता है, इससे पार भूकंप की कोई गति नहीं है। तुम्हारी आत्मा में भूकंप के जाने का कोई उपाय नहीं है। क्योंकि
SR No.032110
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages407
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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