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________________ है-विष के कारण होती है। जीसस सूली पर लटक कर मरते हैं। सुकरात जहर पी कर मरता है। रमण को कैंसर था, रामकृष्ण को कैंसर था। सुख-दुख कब किसके शांत हुए। सुख-दुख तो चलते ही रहेंगे और विचार भी! किये - अनकिये कर्मों से भी बिलकुल छुटकारा नहीं हो सकता। तुम कैसे छुटकारा करोगे? तुम कहो कि हम बिलकुल बैठ जाएंगे, हम कुछ करेंगे ही नहीं यही तो पुराने ढब का संन्यासी कहता है : हम बैठ जाएंगे, कुछ करेंगे ही नहीं लेकिन बैठना कर्म है। बैठे -बैठे हजारों चीजें हो जाएंगी। तुम बैठोगे, सांस तो लोगे? सांस लोगे तो पूछो वैज्ञानिक से, वह कहता है एक श्वास में लाखों जीवाणु मर जाते हैं। हो गई हत्या, हो गई हिंसा। बांध लो कितनी ही मुंहपट्टी मुंह पर, बन जाओ जैन तेरापंथी मुनि, बांध लो मुंहपट्टी-कुछ फर्क नहीं पड़ता। तुम्हारी पट्टी से टकरा कर मर जाएंगे। मुंह तो खोलोगे, बोलोगे तो, श्रावकों को समझाओगे तो? वह जो मुंह से गर्म हवा निकलती है, उसमें मर जाएंगे। भोजन तो करोगे, पानी तो पीयोगे, कुछ तो करोगे ही-जब तक जीवन है कृत्य तो रहेगा। और प्रत्येक कृत्य के साथ कुछ न कुछ हो रहा है। प्रत्येक कृत्य में कुछ न कुछ हिंसा हो ही रही है। जीवन हिंसाशून्य हो ही नहीं सकता। भाग जाओगे, छोड़ दोगे सब-जहां जाओगे वहां कुछ न कुछ करना पड़ेगा। भीख तो मांगोगे? कृत्य तो जारी रहेगा; जीवन का अनिवार्य अंग है। जीवन जब शून्य हो जाता, तभी कृत्य शून्य होता है। और जब कुछ करोगे तो कुछ विचार भी चलते रहेंगे। अब संन्यासी बैठा है, उसे भूख लगी है तो विचार न उठेगा कि भूख लगी? महावीर को भी उठता होगा कि भूख लगी, नहीं तो भिक्षा मांगने क्यों जाते? विचार तो स्वाभाविक है, उठेगा कि अब भूख लगी। रास्ते पर अंगारा पड़ा हो तो महावीर भी हों तो बच कर निकलेंगे, उनको भी तो विचार उठेगा कि अंगारा पड़ा है, इस पर पैर न रखू पैर जल जाएगा। तुम पत्थर महावीर की तरफ फेंकोगे तो उनकी आंख भी झप जाएगी। इतना तो विचार होगा न, इतनी तो तरंग होगी न, कि पत्थर आ रहा है, आंख फूटी जाती है, आंख झपा लो! विचार तो उठता रहेगा, क्योंकि विचार भी जीवन का अनुषंग है। जब तक श्वास चलती है, तब तक विचार भी उठता रहेगा। इसका क्या अर्थ हुआ? क्या इसका अर्थ हुआ कि आदमी के शांत होने का कोई उपाय नहीं? नहीं, उपाय है। उसी उपाय की तरफ इंगित करने के लिए अष्टावक्र कहते हैं कि पहले यह समझ लो कि कौन-कौन से उपाय काम नहीं आएंगे। छोड़ कर भागना काम नहीं आएगा। कर्म से बचना काम नहीं आएगा। विचार से लड़ना काम नहीं आएगा। कृताकृते च वंद्वानि कदा शांतानि कस्य वा। तू मुझे बता जनक किसके कब विचार शांत हुए हैं? किसके कब द्वंद्व, दुख शांत हुए? जीवन है तो वंद्व है। दिन को जागोगे, तो रात सोओगे न? वंद्व शुरू हो गया, दोहरी प्रक्रियाएं हो गईं। श्रम करोगे तो विश्राम करोगे। सुख होगा तो उसके पीछे दुख आएगा, जैसे दिन के पीछे रात आती है। रात के पीछे फिर दिन चला आ रहा है। हर सुख के पीछे दुख है, हर दुख के पीछे सुख है-श्रृंखला बंधी है। श्वास भीतर लोगे तो फिर बाहर भी तो छोड़ोगे न? नहीं तो फिर भीतर न ले सकोगे।
SR No.032110
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages407
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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