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________________ है तो एक इस्तिहान बाकी है। और वह है जागने का। जो-जो मूर्छा में सहा है, अब उसे जाग कर सह लो। जो भी तुम जाग कर सह लोगे उससे तुम मुक्त हो जाओगे। जब से तेरी लगन लगी है हमें हम परीदा-हवास रहते हैं। दिल की दूरी अगर न हायल हो पास ही तेरे दास रहते हैं। जब से तेरी लगन लगी है हमें हम परीदा-हवास रहते हैं। तब से हमारी बुद्धि का होश उड़ गया! जिनकी बुद्धि का होश उड़ गया है, वही मेरे काम के हैं। जब से तेरी लगन लगी है हमें हम परीदा-हवास रहते हैं। दिल की दूरी अगर न हायल हो पास ही तेरे दास रहते हैं। बस जरा-सी दूरी रह गई है। वह दूरी है तुम्हारे मूर्छित हृदय की। वहा थोड़ा जागरण का दीया जल जाए, फिर कोई दूरी नहीं। और वही मूर्छा सब दुखों का कारण है। बेहिस वीरानी छाई है अलबेले अरमां रूठे अक्ल ने कैसी बेदर्दी से दिल की बस्ती लूटी है! बुद्धि ने तुम्हें लूटा है। तुम बुद्धि के हाथों लूटे गए हो। बेहिस वीरानी छाई है अलबेले अरमां रूठे अक्ल ने कैसी बेदर्दी से दिल की बस्ती लूटी है! गुमसुम रहते हैं दुख सहते हाले-दिल किससे कहते? अपने- आप से छूट गए हम तेरी गली क्या छूटी है! वह जो प्रभु की गली है-प्रेमगली अति सीकरी तामें दो न समाय-वह जो प्रभु की गली है जहां केवल एक ही समा सकता है, वह छूट गई उसी दिन, जिस दिन तुम हुए। गुमसुम रहते हैं दुख सहते
SR No.032110
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages407
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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