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________________ क्योंकि हम कर्तव्य को प्रेम-रहित जाने हैं। हमें पता नहीं कि जब प्रेम से प्राण भरते हैं तो कर्तव्य छाया की तरह चला आता है। एक संन्यासी हिमालय की यात्रा पर गया था। वह अपना बिस्तर-बोरिया बांधे हुए चढ़ रहा है- पसीने से लथपथ, दोपहर है घनी, चढ़ाव है बड़ा। और तभी उसने पास में एक पहाड़ी लड़की को भी चढ़ते देखा, होगी उम्र कोई दस-बारह साल की, और अपने बड़े मोटे -तगड़े भाई को जो होगा कम से कम छह सात साल का, उसको वह कंधे पर बिठाए चढ़ रही है-पसीने से लथपथ। उस संन्यासी ने उससे कहा, बेटी, बड़ा बोझ लगता होगा? उस लड़की ने बड़े चौंक कर देखा और संन्यासी को कहा, स्वामी जी! बोझ आप लिए हैं, यह मेरा छोटा भाई है! तराजू पर तो छोटे भाई को भी रखो या बिस्तर को रखो, कोई फर्क नहीं पड़ता-तराजू तो दोनों का बोझ बता देगा। लेकिन हृदय के तराजू पर बड़ा फर्क पड़ जाता है। छोटा भाई है, फिर बोझ कहा? फिर बोझ में भी एक रस है, फिर बोझ भी निबोझ है। जिस व्यक्ति को आत्म-भाव जगा, जिसने स्वयं को जाना, उसके लिए सारा अस्तित्व परिवार हो गया, इससे एक नाता जुड़ा। जिस दिन तुम स्वयं को जानोगे उस दिन तुम यह भी जानोगे कि तुम इस विराट से अलग और पृथक नहीं हो; यह तुम्हारा ही फैलाव है, या तुम इसके फैलाव हो, मगर दोनों एक हो। उस एकात्म बोध में तुम कैसे किसी की हानि कर सकोगे, तुम कैसे हिंसा कर सकोगे, तुम कैसे किसी को दुख पहुंचा सकोगे तुम कैसे बलात्कार कर सकोगे किसी भी आयाम में, किसी के भी साथ, तुम कैसे जबर्दस्ती कर सकोगे? वह तो अपने ही पैर काटना होगा। वह तो अपनी ही आंखें फोड़ना होगा। वह तो अपने ही साथ बलात् होगा। जिस व्यक्ति को आत्मज्ञान होता, उसे यह भी ज्ञान हो जाता कि मैं और तू दो नहीं हैं, एक ही हैं। उस ऐक्य बोध में दायित्व फलित होता है। लेकिन वह दायित्व तुम्हारे कर्तव्य जैसा नहीं है। तुम्हें तो करना पड़ता है। उस सर्वतंत्र स्वतंत्र अवस्था में करने पड़ने की तो कोई बात ही नहीं रह जाती-होता है। संन्यासी खींच रहा था बोझ को, परेशान था, सोच रहा होगा हजार बार. 'कहीं सुविधा मिल जाए तो इस बोझ को उतार दूं हटा दूं! किस दुर्भाग्य की घड़ी में इतना बोझ ले कर चल पड़ा! पहले ही सोचा होता कि पहाड़ पर चढ़ाई है, घनी धूप है..। ' इन्हीं बातों को सोचता हुआ जाता होगा इन्हीं बातों के पर्दे से उसने उस छोटी-सी लड़की को भी देखा। लेकिन लड़की इस तरह का कुछ सोच ही नहीं रही थी। उनकी भाषाएं अलग थीं। उसने कहा, यह मेरा छोटा भाई है। आप कहते क्या हैं स्वामी जी? अपने शब्द वापिस लें! बोझ! यह मेरा छोटा भाई है! । वहां एक संबंध है, एक अंतरसंबंध है। जहां अंतरसंबंध है वहां बोझ कहां! और जिस व्यक्ति का अंतरसंबंध सर्व से हो गया। वह सर्वतंत्र स्वतंत्र हो जाए लेकिन अब सर्व से जुड़ गया। तंत्र से मुक्त हुआ सर्व से जुड़ गया। तो तंत्र में तो एक ऊपरी आरोपण था। कानून कहता है ऐसा करो। नीति-नियम कहते हैं, ऐसा करो। न करोगे तो अदालत है। अदालत से बच गए तो नर्क है। घबड़ाहट पैदा होती
SR No.032110
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages407
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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