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________________ न सोच हो, विचार हो न मज्चति......| -न त्याग हो; न गृह्णाति.......| -न पकड़ हो; तदा मुक्ति..... -वहीं है मोक्ष। यह शुद्धतम मोक्ष की परिभाषा है। इसका यह अर्थ हुआ कि ऐसा भी नहीं है कि तुम्हें किसी दिन मोक्ष मिलेगा, तुम चाहो तो अभी भी, कभी-कभी, भरे संसार में भी क्षण भर को तुम मोक्ष का रस ले सकते हो। क्योंकि अगर क्षण भर को भी विचार बंद हो जाएं, और क्षण भर को भी कोई वांछा न हो क्षण भर को भी चित्त में क्रिया रुक जाए, कोई गति-आवागमन न हो, न कुछ पकड़ने का भाव उठे न छोड़ने का-तो उस क्षण में तुम मोक्ष में हो। और वही स्वाद तुम्हें फिर और- और मोक्ष में ले जाएगा। ध्यान का अर्थ है : थोड़ी-थोड़ी झलकें। समाधि का अर्थ है : झलकों का ठहर जाना, थिर हो जाना। 'जब मन न चाह करता है.। ' लेकिन तुम देखो! जिनको तुम त्यागी कहते हो, वे भी चाह कर रहे हैं मोक्ष की चाह कर रहे हैं! अष्टावक्र की परिभाषा में तुम्हारे त्यागी, त्यागी नहीं हैं। तुम पूछो अपने त्यागी से कि तुमने संसार क्यों छोड़ा? वह कहता है, मोक्ष की तलाश में। तुम पूछो अपने त्यागी से, तुमने धन-द्वार, घर-द्वार क्यों छोड़ा? तो वह कहता है, मोक्ष की तलाश में आत्मा के आनंद को खोजना, सत्य को खोजना। मगर यह तो फिर त्याग न हुआ। मैंने सुना है, दो छोटे-छोटे गांव एक पहाड़ी पर बसे थे। एक था क्षत्रियों का गांव और एक था जुलाहों का गांव। जुलाहे सदा से क्षत्रियों से पीड़ित थे सदा डरते रहे। क्षत्रिय, क्षत्रिय; जुलाहे जुलाहे! उनके सामने अकड़ कर भी न निकल पाते। क्षत्रियों ने नियम बना रखा था कि उनके गांव में से कोई जुलाहा मूंछ पर ताव दे कर नहीं निकल सकता, तो मूंछ नीची कर लेनी पड़ती। बड़ी पीड़ा थी जुलाहों को। आखिर उन्होंने कहा, इसका कुछ उपाय करना पड़े, आखिर एक सीमा होती है सहने की। उन्होंने कहा, एक रात जब क्षत्रिय सोए हों क्योंकि जागे में तो उन पर हमला करने में झंझट है-जब सब क्षत्रिय सोए हों और उनको कभी कल्पना भी नहीं हो सकती, किसी क्षत्रिय ने सपना भी न देखा होगा कि जुलाहे हमला करेंगे तो रात में हम चले जाएं और अच्छी मार-कुटाई कर दें और लूटपाट कर लें। बड़ी हिम्मत बांध कर जुलाहों ने क्षत्रियों के गांव पर हमला किया, लेकिन जुलाहे तो जुलाहे थे। सोए हुए क्षत्रिय भी जागे हुए जुलाहों के लिए काफी थे। वे पहले ही से घबड़ा रहे थे एक-दूसरे के पीछे हो रहे थे, बामुश्किल तो पहुंचे क्षत्रियों के गांव में उनके पहुंचने के शोरगुल में इसके पहले कि वे हमला करें या कुछ करें, क्षत्रिय जग गए। वे सोच-विचार ही काफी करते रहे कि कहां से करें
SR No.032110
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages407
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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