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________________ हैं-तत्पर हो कर! इन सांडों की लड़ाई में लोग जितने ध्यान-मग्न दिखाई पड़ते हैं और कहीं दिखाई नहीं देते। पुराने दिनों में, रोमन दिनों में आदमियों को छोड़ दिया जाता था जंगली जानवरों, शेरों, सिंहों के सामने और उनसे लड़ाई.। और लार मुर्गे लड़ाते हैं लोग, कबूतर लड़ाते हैं लोग। अगर तुम्हारे पड़ोस में पति-पत्नी लड़ने लगें, तो तुम दीवाल से कान लगा कर बैठ जाते हो। रस है तुम्हारा ऐसी बातों में जिनके द्वारा तुम किसी भांति अपने पर से अपना ध्यान हटा लो। सारा धर्म कहता है. अपने पर ध्यान लगाओ, तो आनंद फलित होगा। तुम अपने पर से ध्यान हटा रहे हो। और जब तुम्हारा ध्यान थोड़ी देर को हट जाता है, तुम सफल हो जाते-तुम कहते, जरा सुख मिला! जरा-सा सुख मिला। संगीत में डूब गए, कि संभोग में डूब गए, कि शराब में डूब गए-जरा-सा सुख मिला। क्षण भर को अपने को भूल गए, किया विस्मरण-सुखी थे? विस्मरण सुख है? तो फिर सब बुद्ध नासमझ हैं। क्योंकि वे कहते हैं, आत्म-स्मरण आनंद है। तो आनंद और सुख की परिभाषा समझ लो। आत्म-स्मरण आनंद है। स्वेच्छा से आत्म-स्मरण की तरफ जाना साधना है। आत्म-विस्मरण सुख है। जबर्दस्ती स्वयं की याद दिला दे कोई चीज तो दुख है। तुम जिसे दुख कहते हो, उससे आनंद करीब है, बजाय तुम्हारे सुख के। फिर से मैं समझा दूं? आत्म-स्मरण आनंद है; आत्म-विस्मरण सुख है। और दुख है दोनों के बीच में। दुख में मजबूरी से आदमी को स्वयं का थोड़ा बहुत स्मरण करना पड़ता है-मजबूरी से, जबर्दस्ती; करना नहीं चाहता! सिर में दर्द है और अपनी याद आती है। हृदय में एक कांटा चुभा है और पीड़ा के कारण याद आती। करना पड़ता है! भागता है कि कोई उपाय खोज ले, कहीं शराब की बोतल खोल ले और अपने को भूल जाए। जहां भी तुम अपने को भुलाने जाते हो भला वह मंदिर हो या मस्जिद, प्रार्थना हो या नमाजवह सब शराब है। जहां मूलने का तुम उपाय खोजते हो, वह सब शराब है। भूलना मात्र आदमी को अपने से दूर ले जाता है। अगर तुम्हें मेरी यह बात समझ में आई हो, तो तुम तपश्चर्या का अर्थ भी समझ लोगे। तपश्चर्या का अर्थ है : जब दुख हो तो उससे भागना नहीं। तपश्चर्या का अर्थ है : जब जीवन में दुख हो, तो उससे जरा भी भागने की कोशिश न करनी, बल्कि ठीक उस दुख के बीच ध्यानस्थ हो कर बैठ जाना; उस दुख को देखना; उस दुख के प्रति जागना और साक्षी- भाव पैदा करना। इसलिए मैंने कहा कि दुख से आनंद करीब है, बजाय सुख के। मैं तुमसे यह नहीं कह रहा हूं कि तुम दुख पैदा करो क्योंकि वह तो दुखवाद होगा, वह एक तरह का मैसोचिज्म होगा। मैं तुमको यह नहीं कह रहा कि तुम अपने को सताओ; जैसा कि कई मूढ सता रहे हैं। जिंदगी में दुख अपनेआप काफी है, अब तुम्हें कुछ और करने की जरूरत नहीं है। जीवन काफी दुखदायी है, दुख ही दुख से भरा है। जन्म दुख है, जरा दुख है, मृत्यु दुख है-यहां दुख ही दुख हैं। बुद्ध ने कहा, यहां दुखों की
SR No.032110
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages407
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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