SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 254
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ झील में तरंगें हैं तो तरंगों से जो आवाज उठती, वह पास की वादियों में गंजने लगती है-उसका हिसाब रखता है। जब तक कर्म न बन जाए कोई चीज, तब तक राजनीति नहीं बनती। जिन लोगों ने कृष्ण की गीता पर टीका लिखी है, उनमें तीन तरह के लोग हैं। एक तो राजनीतिज्ञ हैं; जैसे तिलक, अरविंद, गांधी-इन्होंने कृष्ण की गीता पर टीकाएँ लिखीं। इन सबकी कोशिश यह है कि गीता में कर्मयोग सिद्ध करें कि कर्म ही सब कुछ है। फिर दूसरे विचारकों ने टीकाएं लिखी हैं। उनका आग्रह है कि वे विचार की किसी परंपरा को सिद्ध करें- अगर विचार की कोई परंपरा भक्ति को मानती है तो भक्ति को सिद्ध करें; अगर विचार की कोई परंपरा ज्ञान को मानती है तो ज्ञान को सिद्ध करें; विचार की कोई परंपरा अद्वैत को मानती है तो अद्वैत सिद्ध करें, सिद्ध करें, या द्वैताद्वैत सिद्ध करें। हजारों विचार की परंपराएं हैं। वे द्वैत को मानती है तो वैत विचारकों की व्याख्याएं हैं। तीसरी व्याख्या कभी की नहीं गई। क्योंकि तीसरी व्याख्या तो की नहीं जा सकती। तीसरी व्याख्या है साक्षी- भाव की। वह तो अनुभव की बात है । उस व्याख्या में तो कोई उतरता है - सका, करने का कोई उपाय नहीं है। क्योंकि अगर वह तीसरी भी व्याख्या की जाए तो वह दूसरी व्याख्या बन जाएगी। अगर कोई यह भी सिद्ध करने की चेष्टा करे कि साक्षी - भाव गीता का मूल उद्देश्य, ध्यान है, समाधि है - तो भी वह विचार का हिस्सा हो जाएगा। तीसरी व्याख्या की नहीं जा सकती। लेकिन जिन्होंने तीसरी व्याख्या समझी अनुभव से, वे ही समझ पाए; बाकी सबने अपनी समझ के कारण कृष्ण की समझ को अस्तव्यस्त कर दिया। 'जब मन कुछ चाहता, कुछ सोचता, कुछ त्यागता, कुछ ग्रहण करता, जब सुखी - दुखी होतातब बंध है।' तदा बंध! पकड़े फिर मजा है कि कुछ लोग पकड़ते, कुछ लोग छोड़ते। कुछ लोग संसार को पकड़े हुए हैं। हु लोगों को कुछ समझाते हैं कि छोड़ो, संसार में दुख है, छोड़ो, भागों ! लेकिन जो भाग रहे हैं वे सुखी नहीं दिखाई पड़ते। उनके जीवन में कोई प्रसाद नहीं मालूम होता। जो भाग कर बैठ गए हैं जंगलों-पहाड़ों में, मठों में, उनके जीवन में कोई किरण नहीं दिखाई पड़ती, कोई विभा नहीं दिखाई पड़ती।.. बात क्या हो गई? न पकड़ने से कुछ मिलता न छोड़ने से कुछ मिलता। क्योंकि पकड़ते भी तुम वही हो, छोड़ते भी तुम वही हो। कभी-कभी तो ऐसा होता है कि पकड़ने वाले शायद तुम्हें थोड़े - बहुत सुखी भी दिखाई पड़े भगोड़े बिलकुल सुखी नहीं दिखाई पड़ते। क्योंकि पकड़ने वाले को कम से कम जीवन के साधारण क्षणभंगुर सुख तो मिलते हैं। क्षणभंगुर सही कभी किसी स्त्री के प्रेम में कोई पड़ जाता है, तो क्षणभंगुर ही सही, एक सपना तो देखता है सुखी होने का। टूट जाएगा यह सपना, यह भी सच है। लेकिन था - यह भी सच है। लेकिन जो भाग गया है, उसको तो क्षणभंगुर भी खो जाता है; शाश्वत तो मिलता नहीं, क्षणभंगुर भी खो जाता है। मैं एक कहानी पढ़ता था। एक कथा - गुरु ने अपने शिष्यों को कहा कि एक कहानी सुनो और इस पर ध्यान करना और इसका अर्थ कल सुबह ला कर मुझे दे देना- इसकी निष्पत्ति । कहानी
SR No.032110
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages407
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy