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________________ होने से रस मिलता हो, बराबर खड़े हो जाओ, मैं तुम्हें रोकता नहीं। लेकिन मैं तुमसे यह नहीं कह सकता हूं कि सिर के बल तुम खड़े हो गए तो संबोधि की घटना घट जाएगी। तुम सस्ती तरकीबें चाहते हो, मैं तुम्हें कोई तरकीब नहीं देता। मेरे रहते इस आश्रम में कोई नियम, अनुशासन होने वाला नहीं है। मेरे रहते यह आश्रम अराजक रहेगा, क्योंकि अराजकता जीवन का लक्षण है। मैं तुम्हें परिपूर्ण स्वतंत्रता देता हूं कि तुम जो भी होना चाहो और जैसे भी होना चाहो, जागरूकता पूर्वक वही होने में रस लो। पूछा है 'स्वामी योग चिन्मय' ने। बार-बार, चिन्मय घूम-फिर कर यही पूछते हैं। जिन मुर्दा आश्रमों में उनको जाने का दुर्भाग्य से अवसर मिला, उनसे पीछा नहीं छूटता। क्योंकि कहीं कोई एक दफे भोजन करते हैं, कहीं कोई तीन बजे रात उठते हैं, कहीं कोई सिर के बल खड़े होते हैं, नौलीधोती करते हैं, कहीं कोई योगासन साधते हैं, कहीं क्रियायोग, कहीं कुछ, कहीं कुछ। और सब एक जबर्दस्त अनुशासन की तरह, कि न किया तो पाप, अपराध; किया तो पुण्य! ये मूढ़ता के लक्षण हैं। मैं तुम्हें स्वतंत्रता देता हूं। मैं तुम्हें अपराधी नहीं सिद्ध करना चाहता किसी भी कारण से। क्योंकि नियम दूंगा तो उसके पीछे अपराध का भाव आता है। किसी दिन पांच बजे सुबह तुम न उठ पाए तो पीछे से अपराध का भाव आता है कि आज आज्ञा का उल्लंघन हो गया; तुम्हें मैंने अपराधी कर दिया। पांच बजे उठने से तो कुछ मिलने वाला था नहीं। इतनी सस्ती बात नहीं है। स्वास्थ्यपूर्ण है पांच बजे उठो, लेकिन मोक्ष से कुछ लेना-देना नहीं है। ताजी हवा होती है, सुंदर सुबह होती है, एस्थेटिक है। सौंदर्य का जिन्हें बोध है, वे सुबह पांच बजे उठेंगे, लेकिन धर्म से इसका कुछ लेना-देना नहीं। जिन्हें थोड़ा काव्य का रस है वे चूकेंगे नहीं, क्योंकि सुबह पांच बजे जैसी दुनिया होती है, जैसी सुंदर, आदमी से अछूती! अभी सब बुद्ध और बुद्धिमान, सब सो रहे हैं, अभी दुनिया अछूती है, जैसी भगवान ने बनाई होगी, कुछ-कुछ वैसी है! तो पांच बजे जिनको थोड़ा भी जीवन में रस है, वे जरूर उठेंगे। मेरी बात को तुम समझ लेना। मैं यह नहीं कह रहा हूं तुम पांच बजे मत उठो। मैं तो कह रहा हूं. जिनमें थोड़ी भी समझ है वे जरूर उठेंगे। लेकिन यह अनुशासन नहीं है। उठे, तो तुम्हारी मौज। उठे, तो तुमने लाभ लिया, फल मिल गया। तुम्हें मैं कोई प्रमाण-पत्र न दूंगा कि तुम महाज्ञानी हो, क्योंकि पांच बजे उठते हो; क्योंकि तुम उठे तो तुमने लाभ ले लिया अब और कुछ प्रशंसा की जरूरत नहीं है। अगर न उठे तो तुम चूक गए। एक सुंदर सुबह थी मौजूद तुम्हारे द्वार खटखटाई थी, तुम पड़े सोए रहे, घुर्राते रहे। बाहर संगीत फैल रहा था, सुबह का सूरज ऊगा था तुम आंखें बंद किए अपनी तंद्रा में पड़े रहे, तुम चूक गए! दंड तुम्हें काफी मिल गया। अब और मैं तुम्हें इसके ऊपर से अपराधी सिद्ध करूं कि तुमने आज्ञा का उल्लंघन किया-यह तो गलत हो जाएगा। मुल्ला नसरुद्दीन एक दिन जा रहा था अपनी कार से। तेज चला रहा था। पुलिस वाले ने रोका। पुलिस वाले के रोकते ही.. पीछे पत्नी बैठी थी मुल्ला की गाड़ी में। वह एकदम मुल्ला पर नाराज होने लगी कि हजार दफे कहा कि तुम आंख के अंधे हो? तुम्हें दिखाई नहीं पड़ता? कि इतनी तेजी से कार मत चलाओ पू तुम्हें मीटर नहीं दिखाई पड़ता? और तुम्हें मैं पूरे वक्त चिल्लाती रहती हूं कि बाएं
SR No.032110
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages407
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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