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________________ को कोई जगह न बचे। आदर्श गए तो करने के सब उपाय गए। फिर करोगे क्या? फिर तो होना ही बचा। शुद्ध होना! आदर्श से सावधान रहना! आदर्श के कारण ही तुम्हारा जीवन रिक्त रह गया है। आदर्श के कारण ही आदर्श नहीं फल पाए, नहीं फूल पाए। अगर सच में ही तुम चाहते हो कि आदर्श तुम्हारे जीवन को भर दें तो आदर्शों को बिलकुल भूल जाओ और जीवन के साक्षी हो जाओ। जैसा है, है। जो है, है। इस तथाता में ठहरो। इसमें रत्ती भर हेर-फेर करने की आकांक्षा मत करो। तुम हो कौन? तुम हेर-फेर कर कैसे सकोगे? जरा धार्मिक लोगों की विडंबना तो देखो! एक तरफ कहते हैं, उसके बिना हिलाए पत्ता नहीं हिलता, और ये महात्मा बन रहे हैं-उसके बिना हिलाए! इनसे थोड़ा पूछो कि जब उसके बिना हिलाए पत्ता नहीं हिलता तो यह पापी कैसे हिलेगा? जब वह हिलाका, हिलेगे। जब तक नहीं हिलाता तो जरूर कोई राज होगा, स्वीकार करेंगे। अगर दुख दे रहा है तो जरूर मांजने के लिए दे रहा होगा। अगर कामना दी है तो जरूर जलने के लिए दी होगी। इसी आग से गुजर कर निखरेगा रूप। तो स्वीकार करेंगे। पत्ता नहीं हिलता उसकी बिना आज्ञा के, और तुम सारे जीवन को बदल देने की चेष्टा कर रहे हो? तुम हो कौन? और तुम्हारे किए कब क्या हुआ है? और फिर इस जाल को और भी थोड़ा गौर से देखो। तुम जो भी करोगे, तुम्ही करोगे न? कामी कोशिश करेगा ब्रह्मचर्य लाने की, लेकिन कामी कोशिश करेगा न? कामी की कोशिश कामना की ही होगी। क्रोधी कोशिश करेगा करुणा की, क्रोधी करेगा न? तो क्रोधी की सारी चेष्टा में क्रोध होगा। करुणा भी क्रोध से विषाक्त हो जाएगी। अहंकारी विनम्र बनने की चेष्टा करता है, पर अहंकारी करता है। तो तुम विनम्र आदमियों को देखो! उन जैसे सजे-सजाए अहंकारी तुम्हें कहीं भी न मिलेंगे। कोई आदमी आता है, तुमसे कहता है : आपके पैरों की धूल हूं मैं वह यह नहीं कह रहा है कि मैं पैरों की धूल हूं। वह यह कह रहा है मैं बड़ा विनम्र आदमी हूं। वह यह कह रहा है कि अब तुम मुझसे कहो कि नहीं-नहीं, आप और पैरों की धूल? आप तो सरताज हैं! वह यह सुनने को खड़ा है कि बोलो अब! वह यह कह रहा है कि छुओ मेरे चरण! देखो मैंने इतनी विनम्रता दिखाई कि कहा कि मैं तुम्हारे पैरों की धूल हूं और अगर तुमने मान लिया कि नहीं, आप बिलकुल ठीक कहते हैं, पहले तो मैं तो ऐसा मानता ही हूं सदा से कि आप बिलकुल पैरों की धूल हैं। तो वह आदमी तुम्हें जिंदगी भर माफ न कर सकेगा। हालांकि कहा उसी ने था। तुमने कुछ और कुछ जोड़ा न था। तुमने इतना ही कहा कि आप बिलकुल ठीक कह रहे हैं। सभी को पता है। एक-एक आदमी जानता है इस गांव में कि आप बिलकुल पैरों की धूल, पैरों की धूल से भी गए बीते हैं। फिर देखना उस आदमी की आंख में कैसी आग जलती है! तब तुम्हें पक्का पता चलेगा कि विनम्रता की ओट में भी अहंकार पलता है। लेकिन स्वाभाविक है। अहंकार ही विनम्र होने की कोशिश कर रहा है, अन्यथा होगा भी कैसे?
SR No.032110
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages407
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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