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________________ और रसधार बहेगी। परसों भी आएगा, तब तक तुम्हारा रस का अभ्यास और गहन हो जाएगा। तुम और रस से भर जाओगे। तुम और मुग्ध मतवाले, तुम्हारे रोएं-रोएं में मदिरा फैल गई होगी। परसों भी आएगा; तुम और नाचोगे, और गुनगुनाओगे। धीरे-धीरे तुम पाओगे, तुम्हें नाचना आ गया। अब आंगन टेढ़ा हो कि चौकोर, आंगन हो कि न हो, अब तुम नाच सकते हो। अब तो तुम बैठे भी रहो शांत तो भी भीतर नृत्य चलता है। अब तो तुम न भी बोलो तो भी गीत उठते हैं। अब तो तुम कुछ भी न करो तो भी कमल खिलते चले जाते हैं। नियति, स्वभाव का इतना ही अर्थ है जो अपने से हो रहा है, और जो अपने से होगा। जिसे करने के लिए चेष्टा की जरूरत है, वह तुम्हारी नियति नहीं। चेष्टा का अर्थ ही यह होता है कि कुछ नियति के विपरीत करने चले हो; तुमने कुछ अपनी योजना बनाई। जो परमात्मा ने तुम्हें ब्लूप्रिंट दिया, जो परमात्मा ने तुम्हें जीवन की दिशा दी, गंतव्य दिया, उससे अन्यथा तुमने कोई योजना बनाई। और इसलिए तो तुम्हारी योजना कभी पूरी नहीं होती। सदा तुम्हारी योजना टूटती है पराजित होती तुम परमात्मा से लड़ कर जीत न सकोगे। उससे जीतने का एक ही रास्ता है, उससे हार जाना। प्रेम में हार ही विजय है। प्रार्थना में भी वही बात है। प्रार्थना में भी हार विजय है। तुम हारो! तुमने कब से बांध रखे आदर्श, क्या करोगे? और इतना भी तुम नहीं देखते कि जीवन भर आदर्श की चेष्टा करके तुम उपलब्ध क्या कर पाते हो? मैं देखता हूं कोई ब्रह्मचर्य का आदर्श बनाए बैठा है। सब तरह से अपने को कसता है। दीवालें बनाता है, बाधाएं खड़ी करता है, छाती पर पत्थर अटकाता है, ताकि किसी तरह वासना न उठे। लेकिन जितनी चेष्टा करता है उतना ही वासना से भरता चला जाता है। वासना मालूम होती है परमात्मा की है, और ब्रह्मचर्य तुम्हारा है। वासना तो तुम्हें मिली है, ब्रह्मचर्य तुम ला रहे हो। वासना तो स्वाभाविक, प्राकृतिक है; ब्रह्मचर्य आदर्श है। ____ मैं यह नहीं कह रहा हूं कि ब्रह्मचर्य फलित नहीं होता फलित होता है, लेकिन ऐसे ही फलित होता है जैसे वासना फलित हुई है। तुम छोड़ो परमात्मा पर, तुम सहज भाव से बहे चले जाओ। वह जहां ले चले–कभी अंधेरे, कभी उजाले; कभी आंसूओ में, कभी मुस्कुराहटों में तुम चले चलो। तुम निष्ठा रखो। तुम वासना में भी यही खयाल रखो. प्रभु की मर्जी! उसने जो चाहा है, हो रहा है। तुमने तो वासना पैदा नहीं की। एक महात्मा मेरे पास आए और कहने लगे : बस, वासना से छुटकारा करवा दें। मैंने कहा, तुमने पैदा की है? उन्होंने कहा कि नहीं, मैंने तो पैदा नहीं की है। मैंने कहा, जो तुमने पैदा नहीं की उसे तुम मिटा न सकोगे। जो तुमने पैदा की है उसे तुम मिटा सकते हो। तुम पत्नी को छोड़ कर भाग सकते हो, क्योंकि पत्नी तुमने चुनी है, बनाई है। लेकिन वासना छोड़ कर कहां भागोगे? जहां जाओगे वासना रहेगी। तुम स्त्रियों से आंख बंद कर ले सकते हो, तुम आंख फोड़ ले सकते हो। स्त्रियों को देखो न देखो, इससे कुछ फर्क न पड़ेगा। वासना को कैसे मिटाओगे? अंधा भी वासना को देखता
SR No.032110
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages407
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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