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________________ अब दो विधियां हैं इस परम अवस्था को खोजने की। एक तो है कि कर्मों को बदलो, बुरे कर्मों को अच्छा करो, अशुभ को शुभ से बदलो, पाप को हटाओ, पुण्य को लाओ-वह बड़ी लंबी विधि है, और शायद कभी सफल नहीं हो सकती। क्योंकि वे तो इतने अनंत जन्मों के कर्म हैं, उनको तुम बदल भी न पाओगे। वह तो धोखा है। वह तो पोस्टपोन करने की तरकीब है। वह तो मिथ्या है। फिर दूसरी विधि है-या कहना चाहिए वस्तुत: तो एक ही विधि है-यह दूसरी विधि कि तुम सारे कर्मों के पीछे खड़े हो कर साक्षी हो जाओ। तो तुम अभी हो सकते हो। इसी क्षण हो सकते हो। अष्टावक्र की महागीता का मौलिक सार इतना ही है कि तुम यदि चाहो तो अभी किनारे पर निकल जाओ और बैठ जाओ। अभी साक्षी हो जाओ! और जब तक तुमने कर्मों को बदलने की कोशिश की, तब तक तो तुम नई नई उलझनें खड़ी करते रहोगे। क्योंकि हर पाप के साथ थोड़ा पुण्य है, हर पुण्य के साथ थोड़ा पाप है। तुम ऐसा कोई पुण्य कर ही नहीं सकते जिसमें पाप न जुड़ा हो। सोचो, कौन-सा पुण्य करोगे जिसमें पाप न जुड़ा हो? अगर धन दान दोगे तो धन कमाओगे तो! दान दोगे कहां से? पहले कमाने में पाप कर लोगे, तो दान दोगे। यह तो बात बेमानी हो गई। मंदिर बनाओगे तो किन्हीं झोपड़ों को मिटाओगे तभी मंदिर बना पाओगे। किसी को चूसोगे, तभी मंदिर खड़ा हो सकेगा। यह तो बात व्यर्थ हो गई। यह तो पुण्य के साथ पाप चल जाएगा। तुम अच्छा कुछ भी करोगे तो थोड़ा न बहुत बुरा साथ में होता ही रहेगा। बरा भी जब तुम करते हो कुछ न कुछ अच्छा होता, है। तभी तो बुरा आदमी करता है, नहीं तो वह भी क्यों करेगा? एक चोर है, वह चोरी कर लाता है; क्योंकि वह कहता है कि उसका बच्चा बीमार है और दवा चाहिए। बच्चे को दवा तो मिलनी चाहिए। चोरी से मिलती है तो चोरी से, लेकिन बच्चे को दवा तो देनी ही पड़ेगी। जीवन मूल्यवान है। तुम्हारे धन-संपत्ति के नियम इतने मूल्यवान नहीं हैं। परम रासायनिक नागार्जुन के जीवन में उल्लेख है। वह दार्शनिक भी था, विचारक भी था। अपूर्व दार्शनिक था! शायद भारत में वैसा कोई दूसरा दार्शनिक नहीं हुआ। शंकराचार्य भी नंबर दो मालूम पड़ते हैं नागार्जुन से। और ऐसा लगता है शंकर ने जो भी कहा, उसमें नागार्जुन की छाप है। नागार्जुन ने बड़ी अनूठी बातें कहीं हैं। और वह रसायनविद था। उसे दो सहयोगियों की जरूरत थी, जो रसायन की प्रक्रिया में उसका साथ दे सकें। तो उसने बड़ी खोज की। दो रसायनविद आए। वह उनकी परीक्षा लेना चाहता था। तो उसने कुछ रासायनिक द्रव्य दिए दोनों को और कहा कि कल तुम इसका मिश्रण बना कर ले आना। अगर तुम सफल हो गए मिश्रण बनाने में, तो जो भी सफल हो जाएगा वह चुन लिया जाएगा। वे दोनों चले गए। दूसरे दिन एक तो मिश्रण बना कर आ गया और दूसरा रासायनिक द्रव्य वैसे के वैसे ले कर आ गया। नागार्जुन ने उस दूसरे से पूछा कि तुमने बनाया नहीं? उसने कहा कि मैं गया, रास्ते पर एक भिखारी मर रहा था, मैं उसकी सेवा में लग गया। चौबीस घंटे उसको बचाने में लग गए, मुझे समय ही नहीं मिला। और यह जो प्रक्रिया है इसमें कम से कम चौबीस घंटे चाहिए। इसलिए मुझे क्षमा करें। मैं जानता हूं कि मैं अस्वीकृतहो गया, लेकिन कुछ और उपाय न था। भिखारी
SR No.032110
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages407
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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