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________________ को पहचानने की कोशिश करना, तुम किस भांति रोज इस जाल को बुने जाते हो और यह जाल तुम्हें परिचित नहीं होने देता उससे, जो है। __ 'मुझ अंतहीन महासमुद्र में निश्चित ही संसार कल्पना मात्र है। मैं अत्यंत शांत हूं निराकार हूं और इसी के आश्रय हूं।' अतिशातो निराकार एतदेवाहमास्थितः। यह समझ कर कि ये सारी कल्पनाएं हैं-मुझमें ही उठती हैं और लीन हो जाती हैं, ये सब मेरी ही तरंगें हैं-मैं बिलकुल शांत हो गया हूं, मैं निराकार हो गया हूं। और अब तो यही मेरा एकमात्र आश्रय है। अब छोड़ने को कुछ बचा नहीं है, सिर्फ मैं ही बचा हूं। 'आत्मा विषयों में नहीं है और विषय उस अनंत निरंजन आत्मा में नहीं हैं। इस प्रकार मैं अनासक्त हूं स्पृहा-मुक्त हूं और इसी के आश्रय हूं।' नात्मा भावेगु नो भावस्तत्रानन्ते निरंजने। न तो विषय मुझमें हैं और न मैं विषयों में हूं। सब सतह पर उठी तरंगों का खेल है। सागर की गहराई उन तरंगों को छूती ही नहीं। तुम सागर के ऊपर कितनी तरंगें देखते हो! जरा गोताखोरों से पूछो कि भीतर तुम जाते हो, वहां तरंगें मिलतीं कि नहीं? सागर की अतल गहराई में कह। तरंगें? सिर्फ सतह पर तरंगें हैं। उस अतल गहराई में तो सब अनासक्त, शांत, निराकार है, स्पहा-मक्त! और वही मेरा आश्रय है। वही मेरा निजस्वरूप है। कैसा छोड़ना, कैसा त्यागना, किसको जानना? इति ज्ञान! ऐसा जो मुझे बोध हुआ है, यही ज्ञान है। 'अहो, मैं चैतन्य मात्र हूं। संसार इंद्रजाल की भांति है। इसलिए हेय और उपादेय की कल्पना किसमें हो?' किसे छोडूं? किसे पकडूं? हेय और उपादेय, लाभ और हानि, अच्छा और बुरा, शुभ और अशुभ-अब ये सब कल्पनाएं व्यर्थ हैं। जो हो रहा है, स्वभाव से हो रहा है। जो हो रहा है, सभी ठीक है। इसमें न कुछ चुनने को है, न कुछ छोड़ने को है। कृष्णमूर्ति जिसे बार-बार च्चायसलेस अवेयरनेस कहते हैं, जनक उसी सत्य की घोषणा कर रहे हैं चुनावरहित बोध! अहो अहम् चिन्मात्रम्! -बस केवल चैतन्य हूं मैं बस केवल साक्षी हूं! जगत इंद्रजालोपमम्! -और जगत तो ऐसा है जैसा जादू का खेल है, इंद्रजाल। सब ऊपर-ऊपर भासता, और है नहीं प्रतीत होता, और है नहीं। अत: मन हेयोपादेय कल्पना कथम् च कुत्र -तो मैं कैसे कल्पना करूं कि कौन ठीक, कौन गलत?
SR No.032110
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages407
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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