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________________ हानि न लाभ कछु! यहां कुछ है ही नहीं हानि-लाभ, तुम नाहक ही खाते-बही फैलाए और लिख रहे हो बड़ी हानि-लाभ के-इसमें लाभ है, इसमें हानि है, यह करें तो लाभ, यह करें तो हानि। जनक कहते हैं, जो हो रहा है, हो रहा है। मैं तो सिर्फ देख रहा हूं। जगद्वीचि स्वभावत: उदेतु वा अस्तम्। मेरे किए परिवर्तन होने वाला भी नहीं है। क्योंकि स्वभाव में कैसे परिवर्तन होगा? पतझर आती है, पत्ते गिर जाते हैं। वसंत आता है, फिर नई कोंपलें उग आती हैं। जवानी होती है, वासना उठती है। बुढ़ापा आता है, वासना क्षीण हो जाती है। मेरे किए हो भी नहीं रहा है। मैं कर्ता नहीं हूं। तो छोड़ना कैसा, भागना कैसा, त्याग करना कैसा? अष्टावक्र ने एक जाल फैलाया है परीक्षा के लिए और उससे कहा कि तू त्याग कर, यह सब छोड़ दे! जब तुझे ज्ञान हो गया, तू कहता है कि तुझे ज्ञान हो गया तो अब तू सब त्याग कर दे। अब यह शरीर मेरा, यह धन मेरा, यह राज्य मेरा, यह सब तू छोड़ दे। जनक कहते हैं, मेरे छोड़ने से, पकड़ने से संबंध ही कहां है? यह मेरा है ही नहीं जो मैं छोड़ दूं। मैंने इसे कभी पकड़ा भी नहीं है जो मैं इसे छोड़ दूं। यह अपने से हुआ है, अपने से खो जाएगा। स्वभावत: उदेत् वा अस्तम् मे न वृद्धिः च न क्षति। मैं तो इतना ही देख पा रहा हूं कि न तो इसके होने से मुझे कुछ लाभ है न इसके न होने से मुझे कुछ लाभ है। यह बड़ी अदभुत बात है। यही परम संन्यास है। बैठे दुकान पर तो बैठे। हो रही दुकान, तो चल रही है, तो चले! बंद हो जाए तो बंद हो जाए! जब दीवाला निकल गया तो प्रसन्नता से बाहर आ गए! जब तक चलती रही, चलती रही! करोगे क्या? चलती थी तो साथ थे, नहीं चलती तो रुक गए। इस भांति जो ले ले, वैसा व्यक्ति कभी अशांत हो सकता है? वैसा व्यक्ति कभी उद्विग्न हो सकता है? वैसे व्यक्ति के जीवन में कभी तनाव हो सकता है? उसकी विश्रांति आ गई। बचपन था तो बचपन के खेल थे, जवानी आई तो जवानी के खेल हैं, बुढ़ापा आया तो बुढ़ापे के खेल हैं। बच्चे खेल-खिलौनों से खेलते हैं, जवान, व्यक्तियों से खेलने लगते, के, सिद्धातो से खेलने लगते हैं। बचपन में कामवासना का कोई पता नहीं है। तुम समझाना भी चाहो बच्चे को, तो समझा नहीं सकते कि कामवासना क्या है। कोई अभी उठी नहीं तरंग। अभी स्वभाव वासनामय नहीं हुआ। अभी स्वभाव ने वासना की तरंग नहीं उठाई। फिर जवान हो गया आदमी, उठी वासना की तरंगें। फिर तुम लाख समझाओ। मुल्ला नसरुद्दीन मरता था। अपने बेटे को उसने पास बुलाया और कहने लगा कि कहने को तो बहुत कुछ है लेकिन कहूंगा नहीं। बेटे ने पूछा क्यों? उसने कहा कि मेरे बाप ने भी मुझसे कहा था लेकिन मैंने सुना कहां! कहने को तो बहुत कुछ है कहूंगा नहीं। पर बेटा कहने लगा आप कह तो दें, मैं सुनूं या न सुनूं। उसने कहा कि फिर देख मेरे बाप ने भी मुझसे कहा था कि स्त्रियों के
SR No.032110
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages407
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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