SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 2
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ धर्म है जीवन का गौरी शंकर-प्रवचन-एक दिनांक: 26 सितंबर, 1976, श्री रजनीश आश्रम, पूना। प्रश्न सार: पहला प्रश्न: प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक ए. एच. मैसलो ने मनुष्य की जीवन आवश्यकताओं के क्रम में आत्मज्ञान (Self-actualization) को अंतिम स्थान दिया है। क्या आपके जाने आत्मज्ञान मनुष्य-जीवन की एक अनिवार्य आवश्यकता है, और धर्म, अध्यात्म जैसे संबोधन अनावश्यक रूप से आत्मज्ञान के साथ जोड़ दिए गए हैं? कृपा करके समझाएं। पहली बात, कि आत्मज्ञान न तो अनिवार्य है और न आवश्यकता है। वैसी भाषा आत्मज्ञान के संबंध में मूलभूत रूप से गलत है। भूख है तो रोटी की आवश्यकता है। देह है तो श्वास की आवश्यकता है! इनके बिना तुम जी न सकोगे। लेकिन आत्मज्ञान के बिना तो आदमी मजे से जीता है। पानी चाहिए रोटी चाहिए, मकान चाहिए। इनकी तो आवश्यकता है। इनके बिना तुम एक क्षण न जी सकोगे। आत्मज्ञान के बिना तो अधिक लोग जीते ही हैं। तो पहली तो बात आत्मज्ञान आवश्यकता नहीं। और अनिवार्य तो बिलकुल ही नहीं है। कभी कोई बुद्ध, कभी कोई अष्टावक्र, कोई क्राइस्ट, मुहम्मद उस दशा को उपलब्ध होते हैं। यह इतना अद्वितीय है इस घटना का घटना, कि इसको अनिवार्य तो कहा ही नहीं जा सकता, नहीं तो सबको घटती, प्रत्येक को घटती। अध्यात्म एक अर्थ में प्रयोजन-शून्य है, अर्थहीन है। इसलिए तो हम इस देश में उसे सच्चिदानंद कहते हैं। आनंद का क्या अर्थ? आनंद की क्या आवश्यकता? आनंद की क्या अनिवार्यता? परमात्मा
SR No.032110
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages407
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy