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________________ फूलों के उर खुलवाती छिप आना तुम छाया तन! आने दो मुझे, तुम्हारे भीतर आने दो। थामने की बात ही मत उठाओ। तुम्हें मदमस्त होना है। तुम्हें शराबी बनना है। तुम्हें डोलना है किसी मदिरा में। थामने की बात ही मत उठाओ। तुम्हारा डर मैं समझता हूं-कि यह क्या हो रहा है? कहीं मैं अपना होश तो न खो दंगा? कहीं मैं बेसुध तो न हो जाऊंगा? ज्यों श्रौत पथिक पर रजनी छाया-सी आ मुस्काती भारी पलकों में धीरे निद्रा का मधु खुलकाती त्यों करना तुम बेसुध जीवन! यही अब तुम्हारी प्रार्थना हो : त्यों करना तुम बेसुध जीवन! तुम मुझसे कहो कि जल्दी करो तुम मुझसे कहो कि अब ऐसा भय मुझे न रहे कि मैं कुछ थाम कर रुक जाऊं। तुम मुझसे कहो कि अब मुझे डुबाओ, मुझे बेसुध करो। क्योंकि तुमने जिसे अब तक सुध समझी है वह तो बेसुधि थी। तुमने जिसे अब तक होश समझा है वह तो बेहोशी थी। और तुम जिसे अब तक जागरण समझते थे वह सपनों से ज्यादा नहीं था। वह बड़ी गहन अंधेरी रात और नींद थी। अब यह जो बेसुधि मैं तुम्हें देना चाहता हूं जो बेहोशी तुम्हें पिलाना चाहता हूं-यह होश का आगमन है। यह तुम्हें बेहोशी लगती है, क्योंकि तुम जिसे अब तक होश समझे थे, यह उससे विपरीत है। यह मदिरा ऐसी है जो होश लाती है। अज्ञात लोक से छिप-छिप ज्यों उतर रश्मिया आती मधु पीकर प्यास बुझाने फूलों के उर खुलवाती छिप आना तुम छाया तन! तुम मुझे आने दो। तुमने जो कहा है. थामें! उसका अर्थ हुआ कि तुम भयभीत हो गये हो। उसका अर्थ हुआ अगर मैं तुम्हारे द्वार पर दस्तक दूंगा तो तुम द्वार न खोलोगे। उसका अर्थ हुआ कि तुम मुझे पास देख कर द्वार बंद कर लोगे। उसका अर्थ हुआ कि तुम पागलपन से घबड़ा रहे हो। लेकिन ध्यान रखना, धर्म एक अनूठा पागलपन है-ऐसा पागलपन जो बुद्धिमानों की बुद्धियों से बहुत ज्यादा बुद्धिमान है ऐसा पागलपन जो साधारण बुद्धि से बहुत पार और अतीत है ऐसा पागलपन जो परमात्मा के निकट ले जाता है।
SR No.032110
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages407
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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