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________________ है, प्रभात हो रहा है, होश गहन हो रहा है -अब तुम बेहोशी से नहीं जीते, होश से जीने लगे हो और तुम्हारे जीवन में करुणा और प्रेम की छाया आने लगी है; तुम्हारे जीवन से क्रोध और हिंसा विसर्जित होने लगे हैं। ___ बस दो बातें जानने की हैं। वे दो बातें भी एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। भीतर ध्यान घटता है तो बाहर प्रेम घटता है। बाहर प्रेम घटता है तो भीतर ध्यान अनिवार्य रूप से घटता है। अगर प्रार्थना करो तो प्रेम घटेगा और ध्यान उसके पीछे आएगा। अगर ध्यान करो तो ध्यान घटेगा और प्रार्थना उसके पीछे से आएगी। तुम दो में से कोई एक साध लो, दूसरा अपने-आप सध जाता है। साक्षी में पहुंच कर ही तुम्हें सारे जगत के सत्यों के बीच समन्वय की प्रतीति होगी। उस अनुभव की तरफ मेरा इशारा है। इसे तुम बौद्धिक समन्वय बनाने की कोशिश मत करना। दूसरा प्रश्न : आपने कल कहा कि सभी साधनाएं गोरखधंधा हैं। लेकिन साथ ही आप अपने संन्यासियों के लिए ध्यान करना अनिवार्य कर रखे हैं। इससे मन दुविधा में पड़ता है। ध्यान नहीं करने से लगता है कुछ चूक हो रही है और करने पर मन कहता है कि समय तो नहीं गंवा रहे हो? कृपापूर्वक मार्गदर्शन करें। निश्चित ही सभी अनुष्ठान गोरखधंधे हैं। लेकिन इसका यह अर्थ नहीं कि तुम अनुष्ठान करना मत। जैसे कि मैं तुमसे कहूं नाव पर सवार हो जाओ लेकिन उस पार जा कर उतर जाना। तुम कहो कि आप तो दुविधा में डाल रहे हैं. एक हाथ से तो कहते हैं, सवार हो जाओ और तत्क्षण कहते हैं, उतर जाना। अगर उतरना ही है तो हम नाव पर चढ़े ही क्यों? और अगर चढ़ ही गए फिर उतरें क्यों? यह तो आप दुविधा में डालते हैं, चढ़ने को भी कहते हैं, उतरने को भी कहते हैं। लेकिन इसमें विधा है। नाव पर चढ़ना होगा और नाव से उतरना भी होगा। दुनिया में दो तरह के पागल हैं। वे बड़े तार्किक हैं। तर्क बड़ा विक्षिप्त होता है। ठीक है तर्क यह। मैंने सुना है कि कुछ लोग तीर्थ यात्रा को जा रहे हैं-हरिदवार। और ट्रेन पर बड़ी भीड़-भड़क्का है। और एक आदमी बड़ी कोशिश कर रहा है, लेकिन चढ़ नहीं पा रहा। किसी ने ऐसे ही मजाक में उससे कहा कि अरे, इतने क्यों मरे जा रहे हो चढ़ने के लिए, आखिर उतरना पड़ेगा! तो वह आदमी रहा होगा बड़ा विचारक, वह उतर ही गया। उसने चढ़ने की कोशिश छोड़ दी। उसके साथी जो अंदर चढ़ गये थे, उन्होंने कहा कि भई, तू खड़ा क्यों है, गाड़ी छूटने को हो रही है, चढ़! उसने कहा कि तुम्हें पता नहीं, उतरना पड़ेगा। जब उतरना ही है तो चढ़ने के लिए इतनी धक्कम- धक्की क्या करनी?
SR No.032110
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages407
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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